भारत की महानता को बनाए रखने का त्रिवेणी संगम

गांधी, सरदार और बोस - भारत की महानता को बनाए रखने का त्रिवेणी संगम

Written By Dr. Kaushik Chaudhary

Published on February 21, 2016/ ‘Projector’ column at Ravipurti in Gujarat Samachar Daily

‘गांधीजी के आदर्श एक बगीचे में खिलनेवाले गुलाब के सुगन्धित फूल की तरह हैं और सरदार के आदर्श उस गुलाब की रक्षा करने वाले काँटों की तरह हैं। जबकि बोस उस बगीचे के माली हैं।‘

गुलाब दुनिया को सुंदरता और ख़ुशबू देता है। वह सकारात्मकता का प्रतीक है। दुनिया सकारात्मक और नकारात्मक तत्वों के बीच समान रूप से विभाजित है और उनके बीच निरंतर संघर्ष चलता रहता हैं। सकारात्मकता प्रेम, महान आदर्शों और संयम से जुड़ी होती है जबकि नकारात्मकता के कोई नियम नहीं होते। वह बस सब कुछ अपने अधिकार में लेना चाहती है। इस प्रकार, यह एक प्रकार से सत्य और सत्ता के बीच का संघर्ष है। गांधीजी के विचार सत्य की सकारात्मकता के प्रतीक हैं जबकि केवल सत्ता हासिल करने के विचार नकारात्मकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन सत्य सिर्फ़ सच बोलना, अहिंसा और प्रेम रखने तक ही सीमित नहीं है। अहिंसा और प्रेम के शत्रु जब क्रूर बनकर अपने विरोधियों को नष्ट करना चाहते हो, तो उसी प्रेम और अहिंसा का समाज में अस्तित्व बनाए रखने के लिए संघर्ष करना भी सत्य की परिभाषा में आता है। यही बात गीता में भगवान कृष्ण ने सिखाई थी और यही बात गुलाब की रक्षा करने वाले काँटे भी हमें सिखाते हैं।

लेकिन, आजाद भारत में भगवान कृष्ण के उस संदेश को दरकिनार कर दिया गया हैं और गांधीजी की विचारधारा को कायरता और कमजोरी का प्रतीक समान बना दिया गया है। गांधीजी महान हैं यह सत्य है, लेकिन सिर्फ़ गांधीजी ही महान हैं यह विचार फिर उन्ही सत्ता-लालची नकारात्मक लोगों ने अपने फायदे के लिए फैलाया है। गांधीजी सही है यह हमारा गौरव है। लेकिन सिर्फ़ गांधीजी ही सही हैं, यह बात हमारी कमजोरी का कारण बन चुकी हैं।

गांधी के विचार मानवता को सशक्त और अर्थसभर बनाने के लिए थे। लेकिन, जब जिन्ना ने सत्ता के लालच में भारत के विभाजन की बात की और लाखों लोगों की हत्या को आमंत्रित किया, तो परिस्थिति गांधीजी के मानवीय आदर्शो के नियंत्रण से बाहर जा चुकी थी और ऐसे समय एंट्री हुई सरदार पटेल की। ऐसा समय फिर तब आया जब भारत और पाकिस्तान के बीच सेना के बंटवारे की बात आई। गांधीजी ने कहा कि ‘हमें तो अहिंसा के मार्ग से देश चलाना हैं। हमें सेना की क्या ज़रूरत है? सारी फ़ौज पाकिस्तान को दे दो।’ उस समय सरदार ने गांधीजी की अवज्ञा करके निर्णय लिया और कहा किआपके कहने से शायद आजादी मिली होगी, लेकिन उससे देश नहीं चलेगा। आज हम समझ सकते हैं कि अगर पूरी सेना पाकिस्तान को दे दी जाती तो उसने कश्मीर के साथ-साथ पूरे भारत पर कब्जा कर लिया होता। गांधीजी जिस तरीके से भारत को चलाना चाहते थे उस तरीके से उस समय तिब्बत जी रहा था। न कोई सेना, न कोई विदेश नीति। केवल अध्यात्म और अहिंसा के रास्ते पर जीने वाला देश। परन्तु, गांधीजी की मृत्यु के दो वर्ष बाद ही चीन ने तिब्बत में सेना भेजकर दस लाख तिब्बतियों का नरसंहार किया और तिब्बत को अपने कब्जे में ले लिया। इस प्रकार, स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही पाकिस्तान के कश्मीर पर हमले और-और चीन के तिब्बत और भारत पर हमलों ने साबित कर दिया कि गांधीजी के आदर्श सत्य का सिर्फ़ एक हिस्सा ही दर्शाते हैं। सत्य गांधीजी से आगे भी कुछ है और वह बाक़ी का अधूरा सच हैं सरदार और बोस। तभी तो दुनिया को भी सरदार और बोस की महानता का सही पता तब चला जब गांधी जी का मार्ग परिणामहीन दिखने लगा। जहाँ से गांधीजी का सच ख़त्म हुआ वही से सरदार और बोस का सत्य शुरू हुआ।

सरदार का सत्य यह था कि मानवता ग्रहण करने के लिए पहले मानव का अस्तित्व होना ज़रूरी हैं। ऐसे कोई भी महान आदर्श जो मनुष्य के अस्तित्व को जोखिम में डाल दे, वह कभी भी सत्य नहीं हो सकते। सरदार ने सेंकडो रियासतों को एकत्र करके भारत का निर्माण करने के लिए जो साम, दाम, दंड, भेद का तरीक़ा अपनाया था वह उनके उस आदर्श का प्रतिबिंब था कि कोई भी आदर्श जब तक व्यवहारिक हैं तभी तक वह सत्य हैं। सत्य व्यवहारिकता में है, खोखले और अव्यवहारिक आदर्शों में नहीं। सरदार ने कश्मीर और चीन के मुद्दों पर नेहरू को दी सलाह और बोस की आजाद हिंद फ़ौज उसी कृष्णनीति का प्रतिनिधित्व थी जिसका पालन कृष्ण ने महाभारत में किया था।

सरदार और सुभाषचंद्र बोस दोनों ने ही अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के साथ ही की थी। लेकिन, कई वर्षों तक भारत ने अहिंसा के मानवतावादी मार्ग से विरोध किये होने के बावजूद जब अंग्रेज टस के मस न हुए तब बोस ने उस अन्याय के सामने अकेले युद्ध छेड़ने की शुरुआत की। बोस का आदर्श कहता है कि आप अहिंसा का एक महान विचार सामने रखकर अपने मानवीय इरादे दिखा रहे हैं और कह रहे हैं कि जो कुछ भी हो रहा है वह मानवता के खिलाफ है। फिर भी अगर सामने वाले पक्ष पर इसकी कोई असर नहीं हैं और हमारी मानवता को वह कायरता समज बैठे हैं, तो हमें उस मानवता की रक्षा के लिए ही उस अन्यायी लोगों के सामने युद्ध छेड़ देना चाहिए। मानवता इस पृथ्वी पर जीवित रहे इसलिए मानवतावादी इंसान को आखिरी उपाय के तौर पर युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। गांधीजी के जिन महान आदर्शों से प्रभावित होकर बोस और सरदार स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए थे, वह आदर्श इस दुनिया पर भारतीयों द्वारा जीवित रहे उसके लिए सरदार और बोस ने गांधीजी से विपरीत मार्ग अपनाया था।

इस प्रकार भारतीय समाज में गांधीजी का प्रेम और अहिंसा का मार्ग ही हमारा मुख्य आदर्श हैं। वह हमें वेदो के उस महान सन्देश को बार-बार याद दिलाता हैं कि मानवता ही मनुष्य की मुख्य पहचान हैं और उसी रास्ते से ही मनुष्य उसके मुक्ति के लक्ष्य तक पहुँच पायेगा। लेकिन, वे महान सिद्धांत पृथ्वी पर आनेवाली पीढ़ियों तक पहुँच सकें, इसके लिए उसके खिलाफ उठनेवाले हर हाथ को जड़ से उखाड़ फेंकना ही हमारी प्रमुख जिम्मेदारी हैं। यह भी वेदो के ज्ञानकांड ऐसे उपनिषद और भगवद गीता का मुख्य संदेश है और इसी सन्देश का अनुसरण सरदार और बोस ने करके दिखाया। इस प्रकार गांधीजी, सरदार और बोस के आदर्शों का त्रिवेणी संगम ही सदियों से चली आ रही भारतीय संस्कृति का प्रमुख आदर्श रहा है। यही भारतीय विचारधारा का संपूर्ण सत्य है। लेकिन, आजादी के बाद भारतीय राजनीति में व्यक्तिगत लाभ के लिए उस सम्पूर्ण सत्य का दमन हुआ हैं और इसी कारण प्रतिक्रिया में गोडसे और उसके मंदिर बनानेवालो जैसे भ्रष्ट लोग समाज में पैदा हुए हैं। 

गांधीजी के आदर्श एक बगीचे में खिलनेवाले गुलाब के सुगन्धित फूल की तरह हैं और सरदार के आदर्श उस गुलाब की रक्षा करने वाले काँटों की तरह हैं। जबकि बोस उस बगीचे के माली हैं। जो उस गुलाब के फुल को तोड़कर नष्ट करने के लिए उठते हर हाथ के खिलाफ युद्ध करता हैं और उसे उखाड़ फेंकता हैं। इन तीन आदर्शों का त्रिवेणी संगम ही भारतीय राजनीति की मुख्य नीति होनी चाहिए, ताकि भारत को मानवता के एक उत्तम प्रतिनिधि के रूप में इस दुनिया में हमेशा जीवित रखा जा सके। और भारत के माध्यम से मानवजाति की भावी पीढ़ियाँ यह जान सकें कि मानवता क्या है और इसकी रक्षा कैसे करनी हैं।