क्या है हिंदु राष्ट्रवाद?

Written By Dr. Kaushik Chaudhary

Published on August 29, 2022/ On Facebook 

'कैसे ‘लिबरलिज़म’ के मूर्ख विचार को वह प्रकाश दिखाता है?''

शुरुआत दो सवालों से करते है। उसके जवाब दीजिए। पहला, क्या आप ऐसी कोई चीज़ बता सकते है, जो विश्व के सभी देशों के लिए कल्याणकारी है, पर आपके देश के लिए नहीं है? मैं यह नहीं पूछ रहा हूँ, की अफ्रीकी देशों के लिए जो फ़ायदेमंद है, या अमरीका के लिए या रशिया या यूरोपीय देशों के लिए जो फ़ायदेमंद है। मैं कह रहा हूँ की दुनिया के सभी देशों के लिए सामूहिक तौर पर जो जो चीज़ें लाभदायीं है, उनमें से क्या कोई चीज़ ऐसी है, जो भारत देश के लिए लाभदायीं नहीं है?
 
दूसरा सवाल, क्या ऐसी कोई चीज़ है, जो पूरी मानवजाति के लिए या पृथ्वी के सारे मनुष्यों के लिए लाभदायीं है, पर एक मनुष्य के नाते सिर्फ़ आप के लिए नुक़सानदेह है? यहाँ भी मैं यह नहीं कह रहा की उस फलाने इंसान के लिए या उस ढ़िकने देश के इंसान के लिए। सारे मनुष्यों के लिए जो लाभदायीं है, क्या उस में से कुछ आप के लिए नुक़सान देह है?
 
कितना भी सोचें, आख़री जवाब यही मिलेगा- ऐसा कुछ नहीं है। यही है ‘वसुधेव कुटुम्बकम’ का विचार, और उसका गूढ़ अर्थ। जो समस्त के लिए कल्याणकारी है, वही व्यक्तिगत रूप में मेरे और मेरे देश के लिए कल्याणकारी है। इसी महान और सनातन विचार के तहत प्रत्येक मानव को जीवन व्यतीत करने का आहवान करना- इसी को कहते है सनातन धर्म। और सनातन धर्म को ही कहते है हिन्दु जीवन पद्धति, यानी की भारतीय जीवन पद्धति। हिन्दु बस एक भौगोलिक स्थान दर्शाता शब्द है। और इस जीवन पद्धति के आधार पर जिस वैश्विक या सनातन राष्ट्र का निर्माण होता है, उसी का संवर्धन और रक्षण करने की सोच को कहते है ‘हिंदू राष्ट्रवाद’। यानी की हिंदू राष्ट्रवाद एक आंतरराष्ट्रियवाद है। अगर मैं ‘हिन्दु राष्ट्रवादी’ हूँ, तो मेरी राष्ट्रीयता ही मेरी आंतरराष्ट्रीयता है।
 
यानी की दुनिया के किसी भी देश का (भारत का भी) नागरिक अगर यह कहता है की ‘मैं राष्ट्रवादी हूँ’, तो वह अपने देश की रक्षा और संवर्धन की बात कर रहा है, जिसमें शायद वह किसी और देश को तबाह करने को भी अपने देश की रक्षा और संवर्धन मान रहा हो। यही हमने नाज़ी जर्मनी में देखा, जीससे ‘राष्ट्रवाद’ शब्द बदनाम हुआ। लेकिन अगर दुनिया के किसी भी देश का नागरिक अगर यह कहता है की ‘मैं एक हिंदू राष्ट्रवादी’ हूँ, तो इसका अर्थ है की वह ‘वसुधेव कुटुम्बकम’ के उपर्युक्त विचार को मान रहा है और उसका राष्ट्रवाद (Nationalism) एक आंतरराष्ट्रवाद (Internationalism) है। वह उन्ही विचारों को अपनाएगा जो समस्त मानवजाति के लिए लाभदायीं हो, और वह उन विचारों का विरोध करेगा जो समस्त मानवजाति और विश्व के लिए नुक़सानदेह हो। यह एक महान और विस्तृत तरीक़ा है जीवन जीने का। ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ होना सिर्फ़ एक भारतीय होने की पहचान नहीं है, वह दुनिया के किसी भी मनुष्य की एक वैश्विक पहचान है। तो फिर समस्या कहाँ है? पहली समस्या है, की भारतीयों ने कभी इस विचार को दुनिया के सामने इस समझ के साथ प्रचलित नहीं किया। और दूसरी समस्या यह है की विश्व इससे बिल्कुल उलटी सोच के जाल में फँसा हुआ है। वह उलटी सोच है लिबरलिज़म।
 
लेख की शुरुआत में पूछे गए दो सवालों को अब उलटा देते है। पहला सवाल, क्या ऐसी कोई चीज़ है जो किसी एक देश के लिए लाभदायी है, पर विश्व के सभी देशों के लिए लाभदायक नहीं है? जवाब है, ‘हाँ, अनेको चीज़ें है।’ जो सिर्फ़ अमरीका या सिर्फ़ रशिया या सिर्फ़ चाइना के लिए लाभदायक है, वह पूरे विश्व के लिए लाभदायक कैसे हो सकता है? दूसरा सवाल, क्या ऐसी कोई चीज है जो किसी एक मनुष्य के लिए लाभदायक है, पर सारे मनुष्यों के लिए नुक़सानदेह है? फिर से जवाब वही है – हाँ, अनेको चीज़ें है। ऐसा सवाल पूछना ही एक मज़ाक़ है। पर दुर्भाग्य से आधुनिक विश्व में इसी मज़ाक़ को ‘लिबरल होना’ कहेते है। इसे ही ‘सेक्यूलरिज़म’ भी कहते है। पूरे मानव समुदाय में से किसी एक के हित की रक्षा करना ही पूरे समुदाय के हित की रक्षा करना है – यह पश्चिमी लिबरलिज़म (उदारता) है, जिसे विश्व के सभी देशों के लिबरल अपनाते है। और इसीसे पूरी दुनिया ख़तरे में पड़ी हुई है। क्योंकि किसी एक ने तो अपना हित यह मान रखा है की पूरी दुनिया वह जो मानता है वही मान ले, वरना खतम हो जाए। उसके हितों की रक्षा करने का विचार पूरी मानवता पर ग़ुलामी थोपने का मार्ग है। लेकिन वह किया जाता है, ‘लिबरलिज़म’, ‘सेक्यूलरीयम’ और ‘इस्लामोफोबिया’ जैसे विचारों को उग्र बनाकर। किसी एक के स्वार्थ और सत्ता की लालच का पोषण करना समस्त के लिए लाभदायक कैसे हो सकता है? जो समस्त के लिए लाभदायक है, वही किसी एक के लिए भी लाभदायक है – यह विचार जब हम अमल में डालते है, तब अपने आप इस्लामीकरण और नाज़ी राष्ट्रवाद जैसे बर्बरतापूर्ण विचार नष्ट हो जाते है। यही वजह है की इतने हज़ारों सालों की भारतीय सभ्यता में कभी ऐसे विचार पलप ही नहीं पाए, क्योंकी ‘वसुधेव कुटुम्बकम’ के रूप में भारत में हमेशा से यही विचार कार्यरत था। अगर विश्व को भी ऐसी बर्बर सोचों के शिकार होने से बचना है, तो उसे भी ‘लिबरलिज़म’ के इस मज़ाक़िया सिद्धांत को पलटाकर ‘वसुधेव कुटुम्बकम’ के विचार को अपनाना होगा। वही विचार ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ का मूल सिद्धांत है। इसलिए, एक ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ होना ही मनुष्य की सर्वोच्च मानवतावादी पहचान है।