पश्चिम बंगाल कहीं दूसरा कश्मीर बनने के रास्ते पर तो नहीं?

Written By Dr. Kaushik Chaudhary

Published on December 19, 2016/ ‘Projector’ column at Ravipurti in Gujarat Samachar Daily

"जो लोग भारत की महानता दिखाकर विकृत सेक्युलरवाद को पेश करते हैं। वह पहले यह समझ ले कि इस देश का नाम 'भारत' तभी तक है जब तक यहाँ हिंदू विचार बहुसंख्यक हैं। उसके बाद, ना 'भारत' होगा, ना ही उसकी महानता।"

कमलेश तिवारी के विवादित बयान के बाद दिसम्बर के आखिरी हफ्ते में जब पूरे देश में मुस्लिम समुदाय द्वारा शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था तभी पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के कालियाचक इलाके में घरघर पर एक पर्चा बांटा जा रहा था। कालियाचक की 3,92,000 की आबादी में से 3,50,000 यानी की लगभग नब्बे प्रतिशत आबादी मुसलमान हैं। यह पैम्फलेट 3 जनवरी को कमलेश तिवारी के बयान का विरोध करने के लिए सभी मुसलमानों को एक स्थल पर जमा करने के लिए था। तीसरी तारीख को पूरे कालियाचक इलाके से डेढ़ लाख से ज़्यादा मुसलमान जमा हुए और भड़काऊ भाषण सुनकर उन्मादी हो गए। बड़े सांप्रदायिक उन्माद के साथ, वह भीड़ सड़कों पर उतर आई और नेशनल हाइवे को ब्लॉक कर दिया और फिर शुरू हुआ वह घटनाक्रम जिसने कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के दिन की याद दिला दी।

भीड़ ने वहाँ तैनात पुलिस और बीएसएफ के वाहनों में आग लगा दी और वहाँ के थाने में घुस गए। वहाँ के पुलिस अधिकारी थाने से भाग गए तो, भीड़ ने सभी महत्त्वपूर्ण केसफाइलों को जला दिया। लेकिन भीड़ यहीं नहीं रुकी। उन्होंने वहाँ अब अल्पसंख्यक हो चुके हिंदुओं के घरों और दुकानों की ओर रुख किया। उन्होंने हिंदुओं के घरों और दुकानों को जलाना और लूटना शुरू कर दिया। कुछ को रिवॉल्वर से गोली मारकर घायल कर दिया गया। हिंदू महिलाओं के साथ बदसलूकी की। घंटों तक चले इन अत्याचारों पर आख़िर बीएसएफ की एक बड़ी टुकड़ी ने आकर लगाम लगाई। एकसाथ लाखों के संख्या में जुटे औरदुश्मनको सबक सिखाने का आह्वान करती भीड़ को देखकर हिंदू निवासियों को इस हद तक भय और असुरक्षा का अनुभव होने लगा कि उनमें से कई लोग अगले ही दिन अपने घर और संपत्ति छोड़कर मालदा से चले गए और अब हिन्दुओ की संपत्ति को उसके मूल मूल्य के दसबीस प्रतिशत पर वहाँ के स्थानिक मुस्लिम खरीद रहे हैं। यह पूरी बात विस्तार से यहाँ इसलिए बताई गई है क्योंकि दादरी में एक मुसलमान की मृत्यु पर अवॉर्ड वापसी करने वाले सेंकडो साहित्यकार, सुपरस्टार औरसेक्युलर मसीहाजैसे पत्रकारों ने मालदा की इसअलार्मिंगघटना परचूंतक नहीं किया हैं।

ये लोग 19 जनवरी 1989 के उस दिन भी कुछ नहीं बोले थे, जब कश्मीर की मस्जिदों से घोषणा हुई थी की कश्मीर में हिंदू पुरुषों के लिए कोई जगह नहीं है। यहाँ सिर्फ़ हिंदू महिलाएँ ही रह सकती हैं। मालदा की तरह, उस रात भी लाखों लोग हथियारों के साथ सड़कों पर उतर आए और शुरू किया वह कत्लेआम, बलात्कार और अत्याचारों का खेल जिसने भारत की आत्मा को कंपा दिया। 1100 कश्मीरी पंडितो को मार दिया गया। तीन से चार लाख पंडित अपने आलिशान मकान छोड़कर जो हाथ लगा वह लेकर वहाँ से भाग आए और सालो तक तंबूओ में अपना जीवन बिताया। तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला सरकार भी उसी तरह ख़ामोश थी जिस तरह आज ममता बनर्जी की सरकार मालदा में ख़ामोश है। आज कश्मीर में केवल 3700 पंडित हैं। जो कभी हिंदू आध्यात्मिकता की राजधानी रहे कश्मीर की एकमात्र हिंदू आबादी है।

हिंदुओं पर होने वाले इन अत्याचारों के बारे में लिखना आज इस देश में सांप्रदायिकता कहलाता है। इसलिए कितनी भी आदर्श हो लेकिन हिंदुत्व की बात लिखने और सोचने से हर बुद्धिजीवी डरता हैं। उसे डर है कि अभी कोई खड़ा हो जाएगा और उसे राइटविंगर या आरएसएस का एजेंट कह देगा और इसीलिए अधिकांश बुद्धिजीवी ऑफ धी रिकॉर्ड हिंदुओं के भविष्य के बारे में चिंता व्यक्त करते हैं लेकिन सार्वजनिक रूप से बोलने से बचते हैं। हिंदू हितों की बात करने में इतना डर तो तब भी नहीं लगा होगा जब यहाँ पर मुगलों का राज था और इसीलिए हिंदू इतिहास का यह सबसे कठिन और महत्त्वपूर्ण समय है। जब आजादी मिली तब भारत ने अपने दो हिस्सों को पाकिस्तान और बांग्लादेश के रूप में इसीलिए अलग कर दीया था कि सिर्फ़ मुस्लिमलक्षी नीतियों बनानेवाले और मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले लोग उस ज़मीन पर जा के बसे और धर्म के नाम पर तुष्टिकरण की निति से भारत की भूमि बच सके। लेकिन, सत्ता के लिए कुछ राजनीतिक दलों ने मुस्लिम तुष्टिकरण को इस बचे हुए भारत में भी इस हद तक बढ़ावा दिया कि पाकिस्तान भी शर्मिंदा हो जाए। 

और इसी पाकिस्तानी नीति को जोरशोर से बढ़ावा देने का काम पश्चिम बंगाल में ममता बेनर्जी ने शुरू किया हैं। ममता बनर्जी की सरकार वर्तमान में पश्चिम बंगाल के मदरसों में पढ़ाने वाले मुस्लिम उलेमाओं और इमामों को वेतन देती है। मुस्लिम लड़कियों को मदरसों में जाने के लिए साइकिल और मदरसों में उच्च अंक प्राप्त करने वाले मुस्लिम छात्रों को लैपटॉप दिए जा रहे हैं। उर्दू को बंगाल की दूसरी राजनीतिक भाषा घोषित किया गया है। अरे, कलकत्ता की आत्मा के समान दुर्गा पूजा महोत्सव को इसीलिए स्थगित कर दिया जाता है ताकि मुसलमान खुले मन से ईद मना सकें। मालदा की घटना में, ममता बनर्जी सरकार ने केवल नौ लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनमें से छह को तत्काल जमानत दे दी गई क्योंकि उन पर बहुत ही सामान्य धाराए लगायी गयी थी। आज, पश्चिम बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है जो एक साथ एक गुट में वोट करती है और इसीलिए किसी भी पार्टी के लिए वह सबसे बड़ा वोट बैंक है। लेकिन क्षणिक सत्ता के लिए हमेशा के लिए देश के भविष्य को दांव पर लगाने वाली ये पार्टियाँ इस हक़ीक़त से आंखें मूंद रही हैं कि दुनिया के वह सभी 56 देश जहाँ मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से ऊपर गयी हैं, वहाँ, बाक़ी अल्पसंख्यकों का संहार कर दिया गया हैं और भारत में भी इसी स्टाइल का अनुकरण हो रहा हैं। उसके भयानक संकेत कश्मीर और मालदा की घटनाएँ दे चुकी हैं। हम इस झूठे भ्रम से संतुष्ट हैं कि इतनी सदियों की गुलामी के बाद भी भारत में हिंदू जैसे कि तैसे बने हुए हैं। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि कभी हिंदुओं के देश के तौर पर अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और इंडोनेशिया भी थे। जहाँ आज शरिया कानून चलता है। शेष भारत में भी, कश्मीर, असम और बंगाल के मालदा जैसे जिलों में हिंदू संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर है। हम धीरेधीरे अपना घर खो रहे हैं। बस इसकी गति धीमी है इसलिए यह तत्काल महसूस नहीं हो रहा हैं।

इतिहास हमेशा सदियों में पलटता है। सन 1600 में अंग्रेज भारत में व्यापार कर रहे थे। 1757 में वे भारत पर शासन करने लगे थे और 1857 तक भारत उनकी इतनी जबरजस्त पकड़ में था कि एक पूरा सशस्त्र विप्लव भी उन्हें उखाड़ नहीं पाया था। इस प्रकार, हमें आज यह जान लेना होगा कि अगर यह देश आज जैसे चल रहा हैं, वैसे ही चलता रहा तो सौ साल बाद हिंदू संख्या में तो करोडो होंगे लेकिन पृथ्वी पर एक भी प्रदेश ऐसा नहीं होगा जिसे वह अपना कह सके। वह ऐसे ही लावारिश घूम रहे होंगे जैसे तिब्बती बौद्ध आज घूमते हैं और जैसे यहूदी सदियों तक घूमते रहे थे। उस दिन इस देश का नाम भारत नहीं होगा। उसे एक अरब नाम और अरब संस्कृति दी जा चुकी होगी। और उन विकृत सेक्युलरवादियों की आने वाली पीढ़ियाँ उन्ही के कर्मों की सजा भुगत रही होगी। यह कोई कल्पना नहीं है। यह एक आमंत्रित हो रहा भविष्य है।