भारत को अखंडित रखने के लिए आज भी चाणक्य श्रेष्ठ मार्गदर्शक

Written By Dr. Kaushik Chaudhary

Published on December 19, 2015/ ‘Projector’ column at Ravipurti in Gujarat Samachar Daily

"जिसने पौधा लगाया है उसे ही जमीन की सही जानकारी होती हैं, उसी तरह भारत की अखंडितता के लिए बुनियादी विचार क्या हैं यह अखंड भारत के सौप्रथम निर्माता चाणक्य से ही जान सकते हैं।"

मगध का भोगविलासी और भ्रष्ट शासक धनानंद आधी रात को अपने सभागृह में महामंत्री शकटार की प्रतीक्षा में बैठा हैं। उसके चेहरे पर इतनी पीड़ा है कि कब शक्टार आए और वह उसके मन का आक्रंद शुरू कर दे। कुछ दिन पहले जिस बेटे को उसने युवराज घोषित किया था, उसकी कुछ देर पहले ही हत्या हो चुकी हैं और हत्या की हैं उसी के दूसरे बेटे ने। मगध के सेनापति ने इस दूसरे पुत्र का साथ दिया है। जबकि उपसेनापति राजा के प्रति वफादार रहा है। इस प्रकार, मगध की सेना दो गुटों में विभाजित होकर आंतरिक रूप से लड़ रही है। इस दूसरे युवराज ने अपने पिता धनानंद को भी बंदी बनाकर उसके सभी वफादारों को मारने के लिए कहा था। इसी वज़ह से राजा के ख़ास वफादार और शुभचिंतक अमात्य राक्षस भी कहीं छिप गए हैं। इस बीच, बंदी बने राजा के पास ख़बर पहुँची कि उसका दूसरा बेटा भी इस गृहयुद्ध में मारा गया हैं और सेना मृत सेनापतियों के नाम पर आंतरिक रूप से लड़ रही हैं। राजा धनानंद अब मुक्त हैं, लेकिन इस काल रात्रि के कुछ ही घंटों में पिछले डेढ़ सौ वर्षों से मगध पर शासन कर रहे उसके नंद वंश का नाश हो गया है। एक तरफ़ चंद्रगुप्त अपने साथी राजाओं की सेना के साथ मगध के बाहर डेरा डाले हुए है और दूसरी तरफ़ मगध गृहयुद्ध में जल रहा है। इन सबके बीच राजा धनानंद के प्रत्येक राजनीतिक फैसले लेने वाले अमात्य राक्षस उन तक नहीं पहुँच सकते हैं। इसलिए, धनानंद ने पूर्व महामंत्री शक्टार को बुलाया हैं, जिन्होंने वर्षों पहले धनानंद के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई थी और धनानंद ने बदले मेंमगध मेरी मुठ्ठी में है और मैं ही मगध हूँ।ऐसा कहकर उन्हें पदभ्रष्ट कर दिया था।

शक्टार के आते ही, धनानंद विलाप शुरू कर देता हैं, “मेरा पूरा वंश ख़तम हो गया, अब तुम ही बताओ, मैं मगध का क्या करूं?” शक्टार धनानंद से कहता हैं कि इन संजोगो में केवल एक ही व्यक्ति आपको बचा सकता है और वह है विष्णुगुप्त चाणक्य। तब धनानंद को समझ में आता है कि रातों रात हुआ यह विद्रोह पिछले कुछ महीनो से तक्षशिला से मगध आये हुए विवादस्पद आचार्य चाणक्य ने ही कराया हैं। उन्होंने ही उसके दूसरे पुत्र की सत्तालालच का फायदा उठाकर उसे सेनापति के साथ मिलाया था और जब उन दोनों ने युवराज को मार दिया तो चाणक्य के ही गुप्तचरों ने दूसरे राजकुमार और सेनापति को भी मार दिया और पूरी साज़िश इस तरह से रची गयी थी जिससे इस षडयंत्र के पीछे के सारे प्रमाण छुप जाए। अमात्य राक्षस इसके खिलाफ जाते, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी और अगर धनानंद कोई हरकत करता, तो चंद्रगुप्त मगध में घुस कर सब तहस-नहस कर देता। इसलिए, धनानंद ने अपनी हार स्वीकारी और चाणक्य ने आकर धनानंद को वानप्रस्थश्रम के लिए जंगल में भेज दिया। इस प्रकार, एक ही रात में मगध का सत्तापरिवर्तन हुआ और नंदवंश का अंत हुआ।

लेकिन, चाणक्य के लिए असली मुसीबत तो अब शुरू हुई। डेढ़ सौ साल तक नंद वंश के तीन राजाओं ने शासन किया होने की वज़ह से, पाटलिपुत्र के नगरशेठ, व्यापारियों और आचार्यों के बीच उनके कई शुभचिंतक और पारिवारिक मित्र थे। अमात्य राक्षस, उपसेनापति और वर्तमान महामंत्री और गुप्तचर विभाग के प्रमुख भगुरायण जैसे मगध की राजयव्यवस्था के लोग चाणक्य को मगध पर आक्रमण करने वाले आक्रांता के रूप में देखने लगे और प्रजा में भी ऐसा परसेप्शन बनाया गया की चाणक्य ने साज़िश रचकर हमारे राजपरिवार की हत्या करा दी। प्रजा धनानंद से परेशान थी लेकिन फिर भी राज परिवार की हत्या और अमात्य राक्षस जैसे राजयनिष्ठ लोगों से दुश्मनी के कारण, लोग भी चाणक्य को सत्ता लालची कुटिल ब्राह्मण के रूप में देखने लगे। अमात्य राक्षस के गुट ने चंद्रगुप्त और चाणक्य को मारने के लिए कई साजिशें कीं लेकिन चाणक्य हर बार उनसे दो क़दम आगे थे। चाणक्य क्या करना चाहते हैं, यह बात चंद्रगुप्त की भी समझ से बाहर थी। उसने अब चाणक्य से पूछा की, “आप इस अमात्य राक्षस और उसके गुट की हत्या क्यों नहीं करा देते?” तो चाणक्य ने कहा किअमात्य राक्षस और भगुरायन जैसे धर्मनिष्ठ और राजयनिष्ठ लोगों को भारत की भूमि से कम करने में मेरी ही हार हैं। उनकी समस्या यह है कि वे दशकों से नंदो के शासन के कारण नंदवंश को ही मगध मानने लगे हैं और मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि नंदो से पहले भी मगध था और नंदो के बाद भी मगध होगा। मगध यहाँ रहने वाले लोग है, और मगध का हित यहाँ रहने वाले लोगों का हित है। मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि अगर उनका समर्थन मिले तो चंद्रगुप्त उनका अब तक का सर्वश्रेष्ठ शासक बन सकता हैं।

इस विचार से वह धीरे-धीरे महामंत्री, उपसेनापति और भगुरायण को मना लेते है। पूर्व महामंत्री शक्टार इसमें उनकी मदद करते हैं। लेकिन छिपे हुए अमात्य राक्षस अभी भी अपने प्रिय राजा का बदला लेना चाहते है। इसलिए, चाणक्य उनके परिवार और उनके नगरशेठ दोस्तों को क़ैद कर लेते है और राक्षस चाणक्य के सामने उपस्थित न होने पर उन्हें फांसी देने का झूठा आदेश जारी करते है। इसलिए अपने परिवार और दोस्तों को बचाने के लिए क्रोधित राक्षस चाणक्य के सामने आते है। उनके सामने आते ही चाणक्य स्वयं मगध के अमात्य पद को त्याग कर, राक्षस की सजा के रूप में उसे सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का नया अमात्य घोषित करते हैं। तब अमात्य राक्षस समझ जाते है कि चाणक्य का सपना और उनका धर्म धनानंद से बहुत ऊंचा है और नाश तो नंदवंश का हुआ है। मगध को तो पुनर्जीवन मिला है।

अब, जिस तरह डेढ़ सौ वर्षों तक शासन करने से नंद वंश के अंध हितेच्छुओ के रूप में कुछ धर्मनिष्ठ लोग थे, उसी तरीके से, पिछले साठ वर्षों से स्वतंत्र भारत पर शासन करने वाले नेहरू-गांधी वंश के हितेच्छु के तौर पर कई अच्छे लोग हैं। इन लोगों में कई श्रेष्ठ साहित्यकार हैं तो कुछ श्रेष्ठ पत्रकार। कुछ श्रेष्ठ मूर्तिकार और वैज्ञानिक हैं तो कुछ श्रेष्ठ बुद्धिजीवी हैं। इन लोगों के नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ घनिष्ठ और प्रेमपूर्ण सम्बंध थे। प्यार हमेशा अंधा होता है। जिस तरह हम अपने रिश्तेदारों की गलतियाँ नहीं देख पाते हैं, वैसे ही इंदिरा गांधी की महानता और नेहरू और राजीव गांधी के उच्च आदर्शों की बातो से प्रभावित ये लोग, यह समझने को तैयार नहीं हैं कि नेहरू-गाँधी परिवार के वर्तमान वंशजों में से भारतीयता खो गई है और इसलिए भारत की जनता ने उन्हें इतना नीचे गिराया हैं।

इसलिए जब दशकों पुराने किसी शासन का अंत होता हैं, तब उसकेअवॉर्ड वापसी अभियानजैसे आफ्टर शॉक्स हमेशा देखने को मिलते हैं। ऐसे समय में नये शासक पक्ष को चाणक्यनीति से उन्हें अपना बनाने का काम करना पड़ता है और उन्हें समझाना पड़ता है कि समय अपनी ज़रूरत के हिसाब से वक्त वक्त पर एक नया शासक लाता है। हमें अपने व्यक्तिगत सम्बंधों और विचारों को समय के इस जहाज़ में बाधा बनाने के बजाय, उन्हें समय के अनुकूल बनाते हुए समय की मांग समझनी चाहिए। और भारत में इस समय की मांग है समानता। भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए समान कानून। ना कोई बहुमति, ना कोई लघुमति। जो कुछ भी मिलेगा वह सभी भारतीयों को मिलेगा। हिंदुओं, मुसलमानों या ईसाइयों को नहीं। लेकिन, ऐसी समानतावादी नीति की बात करने वाली मोदी सरकार ने सत्ता परिवर्तन से हृदयभंग हुए इन लोगों को अपने विचार समझाने का या उन्हें अपना बनाने की उत्सुकता नहीं दिखाई हैं। उन्होंने अपने काम में श्रेष्ठ इन लोगों को देशद्रोही कहने में अपना समय गंवाया हैं और इसी ने सरकार के खिलाफ इस असहिष्णुता के मुद्दे को गति दी है और देश को बदनाम किया है। चाणक्य ने ही सबसे पहले अखंड भारत की स्थापना की थी और समाज के सर्वश्रेष्ठ लोग शासन से विमुख न हो जाए उसके लिए चाणक्य का पुरुषार्थ ही अखंड भारत की बुनियाद हैं। आशा करते हैं कि हमारी सरकार चाणक्य की उस महानता को ग्रहण करने में सक्षम बनेगी।