चाणक्य का आज के भारत के नाम एक छोटा पर मर्मस्पर्शी संदेश

Written By Dr. Kaushik Chaudhary

Published on July 21, 2022/ On Facebook

कुछ देर पहले भाभी का फोन आया। कहा, ‘आपका भतीजा कल स्कुल में चाणक्य बना है, तो चाणक्य के तौर पर दो मिनट कुछ कहना भी पड़ेगा। तो चाणक्य के हिन्दू धर्म के बारे में कुछ विचार लिख के जल्दी दीजिए।’

मैंने कहा, ‘पहले तो चाणक्य के मुँह से ‘हिन्दू’ शब्द नहीं आना चाहिए। क्योंकि हिन्दू शब्द का भारत में आगमन चाणक्य के चौदह सो साल बाद हुआ। ईरानी लोग ‘सिंधु’ नदी के इस पार रहनेवाले लोगों को ‘सिंधु’ कहते थे। पर उनकी भाषा अवेस्ता में ‘स’ अक्षर के स्थान पर ‘ह’ बोला जाता था। इसलिए वह भारतीयों को ‘हिन्दू’ कहते थे। जब ईरानीयों को मुसलमानों ने जीत लिया और वे कन्वर्ट हुए मुस्लिम ईरानी जब भारत में आए, तब उन्होंने हमें ‘हिंदू’ और हमारे धर्म को ‘हिन्दू धर्म’ कहा। चाणक्य के वक़्त में ‘हिन्दू’ शब्द नहीं था, उस वक़्त हमारा धर्म ‘सनातन धर्म’ ही कहलाता था और ‘धर्म’ की अवधारणा भी कुछ और थी।’ तो इस सूचना के साथ मैंने भतीजे के लिए दस मिनट में कुछ वाक्य लिखकर भेज दिए। पर कुछ देर बाद जब उन थोड़े से वाक्यों को मैंने देखा, तो एहसास हुआ कि असल में आज भारत को लेकर हम जिन बातों से चिंतित है, उसका समाधान तो चाणक्य के इतने विचारों में ही आ जाता है। यह एहसास हुआ कि असल में सत्य और समाधान बहुत ही स्पष्ट और सरल होते है। बस उनका आचरण मुश्किल होता है। चाणक्य बना भतीजा इन भारी शब्दों को कितना समझ और बोल पाएगा वह तो वक़्त ही बताएगा। पर इन शब्दों को हम सब तक पहुंचना और याद रहना बेहद जरूरी है।

“यह वह भारत राष्ट्र है, जहां मनुष्य को ईश्वरत्व पाने का मौक़ा मिलता है। यहाँ मनुष्य किसी ईश्वर का ग़ुलाम नहीं, ना ही वह किसी धर्मग्रंथ का ग़ुलाम है। यहाँ मनुष्य को आहवान किया जाता है की वह किसी भी मार्ग से अपने अंदर की दिव्यता को जागरूक करे। यहाँ उसका लक्ष्य किसी स्वर्ग को पाना नहीं। यहाँ उसका लक्ष्य ईश्वर के साथ एकत्व प्राप्त करना है, स्वयं ईश्वर बन जाना है। यही सनातन धर्म हमारा स्व-तंत्र है। सिर्फ़ किसी विदेशी ताक़त से मुक्त रहना ही स्वतंत्रता नहीं। अपने जीवन में, अपनी सभ्यता में अपने स्व-तंत्र को सक्रिय रखना – इसे ही कहते है स्वतंत्र होना। प्रत्येक भारतीय को अपने इस आध्यात्मिक स्व-तंत्र को अपने जीवन में सदाय जागरूक रखना होगा। भारत को अखंड बनाए रखने का बस यही एक मार्ग है।”

यहां हर भारतीय का मतलब है, हर भारतीय। उसका ईश्वरत्व तक पहुंचने का मार्ग चाहे कोई भी हो, तंत्र हमारा यही स्व-तंत्र होना चाहिए।