भारतीय प्रधानमंत्री का युएन में एक ज़रूरी भाषण, जिसका वक्त आ चुका है

Written By Dr. Kaushik Chaudhary

Published on August 05, 2022/ On Facebook

“वह हम थे जिन्होंने फ़ारसियों को शरण दी, उस वक्त जब उन्हें अपने ही देश से यह सुनकर भागना पड़ा था, ‘या तो इस्लाम क़ुबूल करो, या हमारे ग़ुलाम बनकर रहो, या मर जाओ’। हमने उन्हें अपने देश में अपना बनाकर रखा और फलने फूलने दिया। वह हम थे जिन्होंने तिब्बत के बौद्धों को उनके धार्मिक नेता दलाईलामा के साथ भारत में शरण दी, जब कम्युनिस्टों ने उनके देश और सभ्यता को तहस नहस करना शुरू किया। जब उनकी अपने ही देश में क़त्लेआम हो रही थी, और जब उनके मठों को जलाया जा रहा था, तब हमने उन्हें धर्मशाला का एक बड़ा हिस्सा दे दिया, जहां से वह आज तक अपने देश और सभ्यता के लिए एक निष्कासित सरकार चलाते है। वह हम थे जिन्होंने यहूदियों को हर उस वक्त पर शरण दी, जब भी उन पर किसी ने अत्याचार शुरू किया और उनके पास बचकर वापस जाने के लिए कोई घर नहीं था। हम उनके घर बने, और उन्हें सुख-चैन से जीने का अधिकार दिया। वह भारत था, हमेशा भारत था जिसने मानवता पर जब भी राक्षसी आक्रमण हुआ तब मानवता को शरण और सुरक्षा दी। हम यह इस लिए कर पाए क्योंकि हम मानवता और शैतानियत में फ़र्क़ करना जानते थे। हमने यूनाइटेड नेशंस की तरह आतंकवाद की व्याख्या करने में असर्थता नहीं दिखाई। हम जानते थे की हर वह सोच जो यह कहती है की ‘सिर्फ़ मैं ही सही हूँ, और जो मेरी बात को नहीं मानता उसे ज़िंदा रहने का अधिकार नहीं है। इस दुनिया में सिर्फ़ मेरी ही मान्यता जीवित रहेगी, बाक़ी सब को या तो मेरी तरह बन जाना होगा, या मर जाना होगा।’ – वही सोच आतंकवाद की शुरुआत है। वही अपने आप में आतंकवाद का स्त्रोत है। हम उस विचार को अपने सेक्यूलरिज़म के विचार में सहनशीलता (Tolerance) के नाम पर स्वीकार्यता नहीं दे सकते। पश्चिम ने और यूनाइटेड नेशंस ने यह स्वीकार्यता दे रखी है। और यही आज के विश्व के नाज़ुक वर्तमान और भयावह भविष्य की आशंका का कारण है। हमारा सेक्यूलरिज़म सर्वस्वीकृति (universal acceptance) और सर्व सम्मान के सिद्धांत पर आधारित है। ‘हर सम्प्रदाय और धार्मिक मार्ग आख़िर में एक ही सत्य, एक ही ईश्वर की ओर ले जाता है, इसलिए वे सभी संप्रदाय और धार्मिक मार्ग सही है। उन सभी संप्रदायों को यह सत्य स्वीकार करना होगा और अपने मार्ग को किसी पर थोपने के अपराध से बचना होगा।’ – यह भारतीय सेक्यूलरिज़म है।

इसलिए, जिस शैतानियत ने उन पुरानी सभ्यताओं को विस्थापित और नष्ट किया उसी शैतानी मानसिकता से वह हमारे देश में शरण लेने आएँगे, या उसी मानसिकता से वह हमारे देश में अपना जाल फैलाएँगे, और हम मूर्ख बनकर यह होने देंगे? – अगर दुनिया यह सोचती है, तो वह भारत को अपने चश्मे से देख रही है। हम वह मूर्ख कभी नहीं थे, ना हो सकते है। आपको इसे भारतीय लोकतंत्र के रूप में दुनिया के एक अलग राजनीतिक विचार की तरह देखना होगा। वह सारी लुप्त सभ्यताएँ जिन्हें हमने शरण दी हुई है, वह सारे ईसाई, सिख, बौद्ध, और शिया मुसलमान जो हमारे देश में अल्पसंख्यक है – उन्हें हम जीवित तभी तक रख पाएँगे, जब तक हिंदू सभ्यता भारत में मुख्यधारा में है। इसलिए, आनेवाले युगों में भी मानवता की रक्षा एवं मार्गदर्शन के लिए हिंदू सभ्यता को प्रभावशाली बनाए रखना हमारा मूल लक्ष्य है। बाक़ी सारी बातें उसी बुनियाद पर खड़ी की जाएगी। इस बात का विश्व ख़याल रखें। भारत में अब धर्मांतरणों का वह अमानवीय राजनीतिक खेल नहीं चलेगा।”

अगर मैं कभी भारत के प्रधानमंत्री के तहत शपथ लेता, तो अपने पहले ही युएन भाषण में यह स्पष्टता दुनिया के सामने रख देता। वक्त आ चुका है की वर्तमान भारत के प्रधानमंत्री जो भी हो, वह इस दिशा में चलना (ना की सोचना) शुरू कर दे। गांधीजी को लोग उनकी तरह तरह की ग़लतियों के लिए गालियाँ देते है। पर मेरे अनुसार गांधीजी ने एक ही गलती लगातार की – किसी समस्या के लिए अपने मन में चल रहे व्यक्तिगत उपायों को अत्याधिक महत्व देना और सामने पूरे जनसमुदाय की सामूहिक चेतना में उठ रहे मार्ग और उपायों की लगातार उपेक्षा करना। इसे महान आदर्श विरुद्ध व्यवहारिकता का क़िस्सा मानकर गांधीजी का कुछ बचाव किया जा सकता है, पर आध्यात्मिक रूप से देखें तो यह एक इंसान के व्यक्तिगत अहंकार और सामूहिक चेतना से प्रगट हुए सत्य के बीच का टकराव ज़्यादा है। फिर कभी किसी हिंदू नेता से यह गलती न हो यह ज़रूरी है।