रियल एस्टेट के बहाव और दबाव के बीच खेती और खेतीलायक भूमि की रक्षा कैसे करें?

Written By Dr. Kaushik Chaudhary

Published on June 04, 2022/ On Facebook

'एक ओर, सदगुरु खेतीलायक़ मिट्टी को बचाने के लिए इतना बड़ा अभियान चला रहे है, और दूसरी ओर, वह मिट्टी जिस खेतीलायक़ ज़मीन में है, उस ज़मीन को ही रियल एस्टेट के बाज़ार में अंधाधुंध बेचा जा रहा है। और उस ज़मीन का कोई ख़रीददार उसे खेती लिए नहीं ले रहा।'

7 मई को सदगुरु जगदीश वासुदेव मोरिया के बनास मेडिकल कॉलेज में आए, तो मैं सदगुरु के साथ प्रबुद्ध नागरिकों के एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए वहाँ जा रहा था। जैसे ही मैंने पालनपुर हाइवे से मोरिया तक जाने वाली सड़क की ओर रुख किया, तो देखा सड़क को खूबसूरती से चौड़ा किया गया है और सड़क के दोनों ओर कई नइ रेसीडेंशियल सोसायटियों का निर्माण चल रहा है। कुछ स्थान पर पेट्रोल पंप जैसे व्यावहारिक एकम तैयार हो रह थे, तो कुछ जगहों पर ज़मीन को ऐसे एकमों के लिए तैयार किया जा रहा था। आठ साल पहले जब मैं इस सड़क से गुजरा था, तब यह सड़क संकडी थी, और उसके दोनों ओर पेड़ों की क़तारें और पेड़ों के पीछे लहराते खेत थे। आज तक, मैंने हमेशा इस बदलाव को विकास माना है, क्योंकि वह उस एक सड़क पर ही नहीं, हर शहर के चारों ओर हर सड़क पर हो रहा है। लेकिन उस दिन मैं सदगुरु के मिट्टी बचाओ (save soil) अभियान के तहत एक कार्यक्रम में जा रहा था, और मैंने कई महीनों तक उनके इस अभियान को फोलोव किया था। इसलिए उस दिन मुझे यह अहसास हुआ कि वास्तव में यह विकास खेती की ज़मीन की कीमत पर हो रहा था। और भूमि तो सीमित है। एक ओर, सदगुरु खेतीलायक़ मिट्टी को बचाने के लिए इतना बड़ा अभियान चला रहे है, और दूसरी ओर, वह मिट्टी जिस खेतीलायक़ ज़मीन में है, उस ज़मीन को ही रियल एस्टेट के बाज़ार में अंधाधुंध बेचा जा रहा है। और उस ज़मीन का कोई ख़रीददार उसे खेती लिए नहीं ले रहा। वह बस वक्त आने पर बड़े प्रोफ़िट के साथ किसी बिल्डर या उद्योगपति को वह ज़मीन बेचने के लिए उसे ख़रीद रहा है। तो फिर, मिट्टी को बचाने का मतलब ही क्या है – अगर इस साल नहीं तो अगले साल, इस दशक नहीं तो – अगले दशक में उस मिट्टी पर कोंक्रिट की कोई इमारत ही बननी है?’ अगर आज के सदगुरु के प्रवचन में इस बारे में कोई विचार नहीं मिला, तो मैं यह सवाल पूछूंगा।’ – इस विचार के साथ मैं कार्यक्रम में पहुंचा।
 
जब सदगुरु के प्रवचन में इस बारे में कोई विचार नहीं मिला, तो मैंने सवाल पूछा, ‘सदगुरु, आज पहले की तरह लोग शहर की ओर नहीं जा रहे हैं, आज शहर अपने रियल एस्टेट व्यवसाय के साथ आसपास के गांवों को अपने में निगल रहे है। देश का 67% धन रियल एस्टेट में है, और यह लगातार बढ़ रहा है।’ इससे पहले कि मैं अपनी बात समझा पाता, उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘मैं आपकी बात समझ गया, सर। अब आपका सवाल पूछें।’ मैंने फिर भी सवाल को थोड़ा समझाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फिर से यह कहा, इसलिए मैंने सवाल पूछा, ‘लोगों को खेती करने के लिए कैसे प्रेरित किया जाए, और उन्हें बिल्डरों को अपनी जमीन बेचने से कैसे रोका जाए?’ और फिर वही हुआ जिसका मुझे डर था। शुरू में सवाल को संबोधित करने के बाद, वह दूसरे मुद्दे पर मुड़ गए। उन्होंने कहा, ‘हम एक नफ़ा कमाने वाली बाजार प्रणाली में रह रहे हैं, इसलिए जहां भी लोगों को पैसा और लाभ दिखाई देगा, वे वहाँ मूड जाएँगे। इसीलिए खेती को बड़ा नफ़ा कमानेवाला व्यवसाय बनाना होंगा।’ पर वह कैसे किया जाए, उस मूल सवाल का जवाब देने के बजाए, वे दूसरी बात पर मुड़ गए की ‘अगर गांवों के किसान अपनी जमीन में एक बड़ा घर बना रहे हैं, तो यह अच्छी बात है। हमें उसमें दुखी नहीं होना चाहिए। हमारे गाँव स्लम जैसे है, अगर वे अच्छे बनेंगे तो अच्छा ही होगा। हां, अब समय है कि हमारे रहने की जगह कम रखकर हरने-फिरने और घूमने की जगह ज़्यादा रखे। इसलिए अनेकों फलेट वाली 50-60 माले की किसी एक बिल्डिंग में पूरा गाँव रहता हो, वैसे मोडल विलेज बनाने होंगे।’ वगेरा।
 
लेकिन प्रश्न का उत्तर नहीं मिला, इसलिए यह मेरे दिमाग में भटकता रहा। रात को ध्यान में बैठते समय, मैंने खुद से पूछा, ‘क्या तुम्हारे पास इसका जवाब है? एक ऐसा समाज जहां एक इंसान का मूल्यांकन उसके पास कितना पैसा है उस चीज़ से किया जाता है। जहां भूमि में खेती करने से ज्यादा पैसा नहीं बनता है, पर वही जमीन लाखों करोड़ों की संपत्ति है। तो, हम लाखों-करोड़ों रुपयों को अनदेखा करके लोगों को खेती करने के लिए प्रेरित कैसे कर सकते है?’ अगले एक घंटे में मुझे जो कुछ विचार मिले वह ये थे।
 
1. देश की सरकार उन कृषि उत्पादों की एक सूची बनाए;
(i) जिनकी मांग देश और दुनिया में सबसे ज्यादा है।
(ii) जिसे हमें आयात करना पड़ता है।
(iii) जो अन्य देशों में बहुत आवश्यक है, लेकिन वे देश हमारे स्थान पर अन्य देशों से उन्हें खरीद रहे हैं।
 
2. सरकार औद्योगिक और अन्य घरेलू उत्पादों की एक सूची बनाए, जिन्हें विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों से प्रोसेस करके बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, इथेनॉल को गन्ने से बनाया जा सकता है और सरकार ने वाहनों के उपयोग के लिए पेट्रोल में कुछ प्रतिशत इथेनॉल को मिलाने की अनुमति दे दी है।
 
3. सोईल कार्ड योजना को अधिक प्रभावी बनाते हुए, देशभर की भूमि का एक चार्ट बनाया जाए की कौन से प्रदेश की ज़मीन में कौन सी कृषि उपज या औद्योगिक कच्चे माल की उपज का उत्पादन हो सकता है। और उस पूरे चार्ट को देश के प्रत्येक किसान को उसके मोबाइल पर दे दिया जाए। कृषि विश्वविद्यालय को किसानों को इनमें से प्रत्येक के लिए आवश्यक जानकारी और बीज प्रदान कराने का कार्य सोंपा जाए। नए रिसर्च इंस्टिट्यूट खोले जाए जो एक कंप्यूटर से लेकर सड़क, भवन और फर्नीचर तक के निर्माण में अधिक से अधिक वस्तुओं को खेत उत्पादों से बनाने की टेक्नोलोजीयाँ खोजे।
 
4. इस तरह देश और दुनिया की सभी आवश्यक वस्तुओं एवं रोटी-कपड़ा और मकान के लिए भी आवश्यक वस्तुओं में से ज़्यादा से ज़्यादा वस्तुओं को पहले कृषि उत्पादों से पाने की कोशिश की जाए। सरकार, कृषि विश्वविद्यालय, रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक और किसान – एक इकाई के रूप में काम करे, और खेती को पहले बुनियादी उद्योग के रूप में स्थापित करे।
 
बस, इतना होते ही वह समाज खड़ा हो चुका होगा जिसमें यह चेतना फैली हुई होगी कि ‘यदि आपके पास खेती करने लायक ज़मीन है, तो आप देश के एक बुनियादी उद्योगपति हैं।’ यह एक ऐसा समाज होगा जहां लोग खेती की भूमि को बेचने की नहीं, उसे बढ़ाने की कोशिश करेंगे। उस वक्त अपने आप लोग अपने रहने की जगह को कम करते हुए ज़्यादा से ज़्यादा भूमि खेती के लिए खुली रखेंगे। मेरे ख़याल से मिट्टी बचाने के अभियान की ज़रूरत उस वक्त ज़्यादा होंगी। आज तो ‘खेती की ज़मीन बचाओ’ अभियान की ज़रूरत ज़्यादा मालूम हो रही है। उम्मीद करते है सदगुरु जैसे जागरूक आदर्श इस कार्य के लिए भी जल्द ही चेतना फेलाने का कार्य करेंगे। इस उम्र में सेव सॉइल अभियान को सदगुरु ने जिस तरह विश्वस्तर पर चलाया है वह अद्भुत और प्रेरणादायी है। पिछले एक दशक में योग और प्रकृति संवर्धन के कार्य में सदगुरु ने जो क्रांति की है, वह उन्हें एक आधुनिक पयगंबर के समान बनाता है। उनके कार्य को अधिक संपूर्ण और अधिक उपयोगी बनाने के उद्देश्य से मेरे यह विचार थे जिन्हें उस महात्मा को प्रणाम करते हुए मैं इस देश के सभी जागरूक नागरिकों के सामने रख रहा हूँ। आशा है वे योग्य स्थान तक पहुंच जाएंगे।