भारत के इस्लामीकरण को रोकने का बस यही एक तरीका है..!

Written By Dr. Kaushik Chaudhary

Published on July 25, 2022/ On Facebook

उस सच्चे सेक्युलरिज्म की स्थापना जो आज तक हम नहीं कर पाए!

कौन कहता है भारत का इस्लामीकरण नहीं हुआ? कभी जिस अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और इंडोनेशिया की भूमि को हम भारत कहते थे, उसे आज भारत नहीं कहा जाता। क्यों? कारण सिर्फ़ एक है, वहाँ से हिंदू खतम हो गए। यह कश्मीर में हुआ और वहाँ नारे लग गए, ’India, Go Back’, ‘हिंदुओं कश्मीर घाटी छोड दो, अपनी औरतों को यहाँ छोड़ जाओं।’ इसी शृंखला से आगे बढ़ते हुए धीरे धीरे सौ-दो सो साल बाद कोई एक गुजरात जैसा राज्य बचा होगा, जहां हिंदू बचे होंगे, और जो अपने आप को ‘भारत’ कहते होगे। शायद, उस वक्त भी वह गिने चुने हिंदू यही कोशिश कर रहे होंगे, ‘भारत के इस्लामीकरण को रोकना’। जब की सत्य यह होगा कि भारत का इस्लामीकरण हो चुका होगा।
 
सन 711 में मोहम्मद बिन क़ासिम ने सिंध को जिता था। उसके बाद पंजाब का प्रांत क्रॉस करके उन्हें दिल्ली और गंगा तट पर आने में पाँचसो साल लग गए। वह स्थापित हुए जब पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। पांच सो साल तक मेवाड़ के विभिन्न महाराणा और कश्मीर के ललितादित्य जैसे राजाओं ने उन्हें सिंधु तट पर रोके रखा। पर आख़िर में वे आ ही गए और तकरिबन पूरे भारत में फैल गए। क्योंकि उनका एजंडा, उनका मिशन बिलकुल साफ़ था, पूरी दुनिया पर इस्लाम लागू करना। वह दुनिया जितने के लिए लड़ रहे थे, हम अपने आप को बचाने के लिए लड़ रहे थे। खुद को बचानेवाले को हर बार जितना पड़ता है, और सामनेवाले को जीतने के लिए लड़नेवाले को सिर्फ़ एक बार जितना होता है। हम पाँच सो साल तक जीतते रहे, पर एक बार हारे और मोहम्मद गोरी का ग़ुलाम कुतबुद्दीन ऐबक दिल्ली पर राज करने लगा। मराठाओं ने पूरा भारत वापस लेकर दिल्ली के बादशाह को अपनी कठपुतली बना दिया, पर तभी अंग्रेज हावी हो गए। और जब अंग्रेज गए तब तक मुस्लिमों ने भी इस्लामीकरण को तलवार की जगह आबादी की सियासत से आगे बढाना सिख लिया था। हमने हमारी दो भुजाएँ खो दी, जो युगों से हमारी समृद्धि का कारण थी।
 
पर सवाल यह है की इस इस्लामीकरण को आगे कौन बढ़ा रहा था, कोई अरब से आए हुए ख़लीफ़ा? नहीं, वहीं हमारे लोग, हमारे अपने, हमारे पड़ोसी-रिश्तेदार जो मुस्लिम बन चुके थे। हमारा वही गुजराती ठक्कर भाई, जो अब मोहम्मद अली जिणा बन चुका था। बात बिलकुल सीधी है, अगर मैं आज मुस्लिम बन जाऊँ, तो दूसरे ही पल से मेरी चाह यही रहेगी की जो मेरे साथ हुआ वही मेरे बाक़ी दोस्तों और देशवासियों के साथ हो। वो सब भी मेरे जैसे बन जाए। आगे बहना नैसर्गिक होता है, रिवर्स में जाना शारीरिक और मानसिक महेनत माँगता है। बस इन दो वजहों से आज तक हम भारत के इस्लामीकरण पर ब्रेक नहीं मार पाए।
 
1. हम दुनिया में कुछ स्थापित करने के लिए नहीं, सिर्फ़ अपने आप को बचाने और मुस्लिमों की क्रूरता का विरोध करने के लिए लड़ रहे थे। हम बिलकुल वही कर रहे है, जो नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ विपक्ष कर रहा है। मोदी को रोकने के लिए और मोदी को बुरा बताने के लिए चुनाव लड़ना।
 
2. हम लगातार हिंदू से मुस्लिम हो रहे लोगों की गति को रोक नहीं पाए, उस बहाव को रिवर्स नहीं कर पाए। क्योंकि उस काम में सामने से बल देना पड़ता है। मुस्लिम वह बल सामने से दे रहे है जो सदियों से उनका मिशन है। पर हमारा बल उनसे बचने में जा रहा है। इसलिए धर्मांतरण की गति फ़िज़िक्स के नियम मुताबिक़ प्रवेगी होती रही, लगातार बढ़ती रही।
 
तो, अब उपाय क्या है? क्या हमारे पास बचने के सिवाय सामने से दुनिया में कुछ स्थापित करने के लिए लड़नेवाली कोई चीज़ है? बिलकुल है। सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारे पास ही वह चीज़ है, जिससे अब यह दुनिया बच सकती है। वह है सेक्यूलरिज़म की सही व्याख्या, जो सर्व स्वीकृति पर आधारित है, ना की बुराई और बर्बरता के साथ सहनशीलता (tolerance) पर। भले ही इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के वक्त का ग़लत फ़ायदा उठाते हुए ‘सेक्यूलरिज़म’ शब्द को संविधान की प्रस्तावना में डाल दिया हो, पर भारत में उसकी व्याख्या क्या करनी वह तो अभी तय करना बाकी है। और इसीलिए व्याख्या यह होनी चाहिए,
 
“भारत में सेक्यूलरिज़म यानी इस देश में हर संप्रदाय अपने संप्रदाय की रितरसमों का पालन करने के लिए स्वतंत्र है, पर सिर्फ़ तब तक जब तक वह किसी दूसरे संप्रदाय, इंसान या प्राणी के सम्मान से जीने के अधिकार का उल्लंघन करने के विचार को प्रेरित ना करता हो। ऐसे किसी भी धार्मिक विचार को इस देश में क़ानूनी और संविधानिक स्वीकृति नहीं होगी, जो दूसरे इंसान और प्राणी के सम्मान से जीने के अधिकार को छीनने की बात करता हो। प्रत्येक संप्रदाय अन्य सभी सम्प्रदायों के पथ और रितरसमों के प्रति सम्मान और स्वीकृति का भाव प्रदर्शित करने के लिए बाध्य होगा। और सभी संप्रदायों के लिए दिवानी और फ़ौजदारी क़ानून समान होंगे। यही सेक्यूलर राष्ट्र, सेक्यूलर सम्प्रदाय और एक सेक्यूलर समाज होने का सही प्रमाण है।”
 
यह व्याख्या संविधान के बेजिक स्ट्रक्चर में दाखिल की जाए, और फिर सरकार, न्यायालय और सारे भारतीय नागरिक इस व्याख्या का अनुसरण करने के लिए सारे संप्रदायों को लगातार बाध्य करे। उन सारी धार्मिक किताबों की स्वीकृति नष्ट की जाए जिनके विचार और आदेश सेक्यूलरिज़म की इस व्याख्या का उल्लंघन करते हो। एसे संप्रदाय के लोगों को हिंदू जीवन पद्धति में वापस आने पर इन्सेंटिव और लाभ घोषित कीए जाए। क्योंकि हिंदू कोई धर्म नहीं है, वह एक जीवन पद्धति है जो कहेती है की इंसान के जीवन का लक्ष्य है इस संसार के अंतिम सत्य को खोजना, उसका अनुभव करना। और उस लक्ष्य के लिए इंसान जो चाहे वह मार्ग चुन सकता है, पर उसे किसी दूसरे इंसान पर अपना मार्ग थोपने की छूट नहीं है। यानी की हिंदू होना अपने पसंद के तरीक़े और शास्त्र से सत्य खोजने की स्वतंत्रता है। इसलिए कोई भी संप्रदाय का भारतीय नागरिक हिंदू पहचान में वापस आकर स्वतंत्र हो सकता है, पर हिंदू पहचान का स्वतंत्र नागरिक किसी एक ख़ास सम्प्रदाय में धर्मांतरण करते हुए पराधीन नहीं हो सकता। इस विचार के साथ धर्मांतरणों पर प्रतिबंध ला दिया जाए। जो लोग सेक्यूलरिज़म के इस सच्चे विचार को अनुसरने से इनकार करे उनके वोट का अधिकार छीन लिया जाए, और न मानने पर उनकी नगरिकता भी छीन ली जाए। यही वह चाइनीज़ सिस्टम का भारतीय स्वरूप है जिसका अनुसरण भारत में करने की अब वकालत हो रही है।
 
पहले सरकार भारत में इस व्याख्या का इस तरह सखताइ से पालन करवाए और फिर युनाइटेड नेशन्स में सेक्यूलरिज़म की इसी व्याख्या को विश्वभर के व्यवहार में लागू करने का लगातार दबाव बनाए। यही वह चीज़ है जिसके साथ हमें अब सामने से लड़ना शुरू करना होग़ा। हमें पूरी दुनिया से इस्लामीकरण के वाइरस को मिटाने के लिए लड़ना होगा, ना की इस्लामीकरण से बचने के लिए। अगर इस सत्यनिष्ठ बात को अनुसरने में कायरता बर्ती या संकोच किया, तो भारत के इस्लामीकरण की यह प्रवेगी गति जारी रहेगी, और एक वक्त पर इतनी बेक़ाबू हो जाएगी की करने के लिए अफ़सोस के सिवा कुछ नहीं रहेगा।