हिंदू राष्ट्र और हिंदू राज्य के बीच अंतर

Written By Dr. Kaushik Chaudhary

Published on January 16, 2016/ ‘Projector’ column at Ravipurti in Gujarat Samachar Daily

"हिन्दू राष्ट्र का महान विचार सेक्युलारिज़म के विचार से कई ज्यादा श्रेष्ठ है, यदि देश का प्रत्येक नागरिक इस विचार को समझ ले तो भारत की गंदी राजनीति इसे विकृत करना बंद कर सकती है।"

1893। शिकागो धर्म परिषद के पहले ही भाषण में समग्र विश्व को हिंदू सभ्यता के महान सिद्धांतों के दर्शन कराने के बाद जब स्वामी विवेकानंद से लोग पूरी तरह अभिभूत हो गए थे, तब विवेकानंद ने हजारों की तादात में आये अमरीकी लोगों से कहा, “डरो नहीं। मेरे धर्म की यह महानता दिखाकर में आपका धर्मांतरण करने नहीं आया हूँ। मैं किसी ईसाई को हिंदू बनाने नहीं आया हूँ। मैं किसी मुसलमान को हिंदू बनाने नहीं आया हूँ। ना हीं, मैं एक मेथोडालोजिस्ट को हिंदू बनाने आया हूँ। मैं उस धर्म का प्रतिनिधि हूँ जो कहता है कि हर ईसाई और ज़्यादा बेहतर ईसाई बने, ताकि वह सत्य को प्राप्त कर ले। हर एक मुसलमान और अच्छा मुसलमान बने ताकि वह सत्य को प्राप्त कर ले। प्रत्येक मेथडोलॉजिस्ट या वैज्ञानिक और बेहतर वैज्ञानिक बने जिससे वह सृष्टि के सत्य को प्राप्त कर ले। सत्य यही हैं कि हम सभी एक ही अद्वैत ऊर्जा से बने हैं और हम सभी को अंततः उस अद्वैत की स्थिति में पहुँचना है। आप अपने ईसाई या मुस्लिम रास्ते से वहाँ पहुँचे। मैं अपने हिंदू मार्ग से वहाँ पहुँचूँगा। सत्य के उस आखरी स्थान पर हम सब मिलेंगे। हम सब एक होंगे।

यही है सनातन धर्म। यही हैं भारतीय विचारधारा और यही हैं भारतीय संस्कृति। जो व्यक्ति जहाँ है वहाँ रहकर ही सत्य तक पहुँचे। अपने-अपने तरीके से। कोई दूसरों पर अपना मार्ग न थोपें। सत्य लक्ष्य है, संप्रदाय मार्ग। लक्ष्य प्राथमिक है, मार्ग गौण। इस भारतीय विचारधारा को सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदुत्व की परिभाषा के रूप में माना है और इसे भारतीय संविधान का हार्द कहा है, “हिंदुत्व इज़ धी कोर ऑफ इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन। इस प्रकार यदि कोई हिन्दू किसी मुसलमान से कहे कि मेरी प्रार्थना तुम्हारी नमाज़ से अधिक सच्ची है और मेरा तिलक और भगवा वस्त्र तुम्हारी टोपी से अधिक सत्य है, तो वह हिन्दूराष्ट्र का ही विरोध कर रहा हैं। हिंदुराष्ट्र यानी हिंदुओं द्वारा शासित राष्ट्र नहीं। हिंदुराष्ट्र का अर्थ है एक ऐसा राष्ट्र जो हिंदुओं की इस शाश्वत विचारधारा का पालन करता हो। हिंदुओं द्वारा शासित राष्ट्र को हिंदू राज्यकहा जाता है। हिंदू राज्य का ध्वज भगवा है। इस्लामिक राज्य का झंडा हरा है। लेकिन, हिंदुराष्ट्र का झंडा तिरंगा है। ज्ञान के सूर्योदय को दर्शाता केसरिया, समृद्धि की हरियाली दिखाता हरा रंग और शांति और सत्य का सफेद रंग, जिसके बीच में संसार में चारों ओर धर्म की स्थापना का संदेश दिखाता धर्मचक्र है। यही तिरंगा हिंदुराष्ट्र का सच्चा प्रतीक है।

इस प्रकार, हिंदूराष्ट्र की विचारधारा से बडा कोई सेक्युलारिज़म नहीं है। सेक्युलारिज़म शब्द भी दुनिया में एक तटस्थ धार्मिक नीति के रूप में ही लागू हुआ था। जब सभी धर्मों के लोग सभी देशों में एक साथ रहने लगे, तब उनके बीच वैमनस्य कम करने के लिए, एक ऐसी विचारधारा को जन्म दिया गया, जिसमें कहा गया कि धर्म प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है। इसका राज्य के प्रशासन से कोई लेना-देना नहीं है। राज्य के कानून हर आदमी के लिए समान होंगे, उसमे धर्म को बीच में नहीं लाया जायेगा। कुछ देशों में तो, धर्म को इस हद तक एक व्यक्तिगत विषय माना गया कि कोई व्यक्ति अपनी धार्मिक विचारधारा या प्रतीकों को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नहीं कर सकता था। एक तरीके से जैसे, धर्म एक अनिष्ट हो और इसे छुपाया जाना चाहिए या घर पर ही रखा जाना चाहिए। ऐसे विचार का जन्म ही सेक्युलारिज़म। लेकिन, हिंदूराष्ट्र सेक्युलारिज़म से भी महान विचार है।

हिंदुराष्ट्र में भी कानून हर आदमी के लिए समान ही है, लेकिन यहाँ राज्य ही प्रत्येक धर्म को अपने मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है और सत्य की अंतिम स्थिति तक पहुँचने के लिए सभी धर्मों को आह्वान करता है। इस प्रकार, हिंदुराष्ट्र में मानव जाति के सत्यप्राप्ति के लक्ष्य को सर्वोपरि माना गया है और वहाँ तक पहुँचाते सभी संप्रदाय के मार्ग को प्रशासनिक स्वीकृति दी गई है। लेकिन, कोई एक संप्रदाय अपने मार्ग को दूसरे से श्रेष्ठ माने उसका कड़ा विरोध है। भारत में कुछ राजनीतिक दलों ने सिर्फ़ सत्ता के लिए हिंदुराष्ट्र के इस महान विचार को हिंदूराज्यके सांप्रदायिक विचार के साथ जोड़कर उसका दुष्प्रचार किया हैं। वे मुस्लिम तुष्टिकरण करने के लिए तिरंगे से हरे रंग को अधिक खींचते हैं और इसके खिलाफ हिंदू विचारधारा का बुनियादी मतलब भी नहीं जानने वाले लोग भगवा रंग खींचने लगते हैं। नतीजतन, बीच में रहे सत्य के सफेद रंग के चीथड़े हो जाते हैं।

हिंदू कोई धर्म नहीं है। यह एक जीवन पद्धति है।सारा ब्रह्मांड एक ही ब्रह्म से उत्पन्न हुआ है। इसलिए जो भी मार्ग उचित लगे उस मार्ग से ब्रह्म की उस अंतिम एकता को प्राप्त करना“- यही हिंदू जीवन पद्धति है। तो इस जीवन-पद्धति के अनुसार, कोई मुसलमान चाहे अल्लाह को पुकारे, नमाज़ पढ़े, टोपी पहने या दाढ़ी बढ़ाए, हिन्दुराष्ट्र से उसका कोई विरोधाभास नहीं हैं। जब तक वह उस रास्ते से अल्लाह तक पहुँचने की कोशिश कर रहा है, तब तक वह हिंदूत्व का ही पालन कर रहा है। लेकिन, जब कोई मुसलमान अपने मन में सऊदी अरब की वह विचारधारा बसाता है कि- मुसलमान ही एकमात्र पवित्र हैं और इस्लाम ही एकमात्र सच्चा संप्रदाय है, बाकी सब झूठ है। और जब तक पूरी दुनिया मुस्लिम उपासना पद्धति और मुस्लिम वेशभूषा नहीं अपनाती तब तक पवित्र नहीं होगी।“- तब वह सनातन भारतीय संस्कृति का अपमान करता हैं। तब वह हिंदुराष्ट्र के उदार संविधान का उल्लंघन करता है। जब पेशवा बाजीराव प्रथम से कहा गया किएक तरफ़ तुम मुसलमानों से लड़ रहे हो और दूसरी तरफ़ तुम एक मुस्लिम लड़की मस्तानी से प्यार करते हो।तब बाजीराव ने कहाहमारी लड़ाई मुस्लिम धर्म से नहीं है, हमारी लड़ाई उनकी सल्तनत और उनकी अत्याचारों द्वारा अपना धर्म दूसरों पर थोपने की विदेशी विचारधारा के खिलाफ है।यही शिवाजी का हिंदू-राष्ट्र का विचार था। सावरकर की हिंदुराष्ट्र की अवधारणा भी यही थी।

इस प्रकार, हिन्दुराष्ट्र में मुसलमानों का कोई विरोध नहीं है। लेकिन सच्चाई तक पहुँचने का हमारा रास्ता ही सही है और बाक़ी के गलत- अरबों की इस मुस्लिम विचारधारा का हिंदुराष्ट्र कड़ा विरोध करता है। यह विचारधारा विदेशी है और मानव स्वतंत्रता के लिए अपमानजनक है। यही कारण है कि हिंदुराष्ट्र की विचारधारा में धर्मांतरण भी गैरकानूनी है। हिंदुराष्ट्र में अगर कोई हिंदू मस्जिद में जाना चाहता है, चर्च में जाना चाहता है – तो वह जाए। कुरान और बाइबल के तत्वज्ञान का अध्ययन करना चाहता है तो करें। वह जो उपासना पद्धति चाहे वह अपना सकता है। सत्य मुख्य है, मार्ग गौणलेकिन, वह करते वक्त उस हिंदू को काशीराम से करीम खान या क्रिस चार्ल्स बनने की इजाजत नहीं है। नाम और वेशभूषा बदलने की यह चालाकी धर्म नहीं है, वह संख्याबल की राजनीति है। धर्मांतरण की यह भ्रष्ट राजनीति जब तक इस देश में हैं, तब तक हिन्दुराष्ट्र का यह महान सनातन विचार हमारे देश में अधूरा है। धर्मांतरण के साथ-साथ, जब तक इस देश में धर्म के नाम पर कानून अलग-अलग हैं, तब तक हम हिन्दुराष्ट्र तो क्या, उससे एक स्तर नीचे के पश्चिमी सेक्युलर राष्ट्र भी नहीं हैं।

इसके अलावा, हिंदुराष्ट्र प्रत्येक धर्म के आध्यात्मिक तत्वज्ञान को सत्यप्राप्ति के लक्ष्य के लिए मुख्य साधन मानता है। अत: हिंदुराष्ट्र की पूर्ण स्थापना के लिए प्रत्येक धर्म के क्रियाकांडों और उपासना पद्धतियों को एक तरफ़ रखकर उन धर्मों के तत्वज्ञान और आध्यात्मिकता को एकसूत्र में बाँधना ज़रूरी हैं, ताकि उस संयुक्त तत्वज्ञान को एक विषय के रूप में बच्चों को स्कूल में पढ़ाया जा सके। सभी धर्मों का वह संयुक्त तत्वज्ञान ही करोडो मानवों को उनका लक्ष्य एक होने की अनुभूति कराएगा और उनको एक दूसरे से जोड़ेगा।

इस प्रकार, समय आ गया है कि हम भारत के नागरिक ही हिंदुराष्ट्र के इस सही अर्थ को समझ ले, ताकि कोई और हमें इसका विकृत अर्थ समझाने न आए। हम ही उससे कहे की, “हां, मैं एक हिंदू हूं और यही मेरे सेक्युलर होने का प्रमाण है। हिंदुराष्ट्र किसी धर्म का नहीं बल्कि मानवता का राज्य हैं। जब पूरा विश्व उस सनातन हिंदुराष्ट्र के विचार को समझेगा तभी मानवता अपने वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगी। हिंदुराष्ट्र के विचार की इस सच्ची समझ के बिना, मानवजाति अपने लक्ष्य के मार्ग में निहत्थी है।