Published on October 01, 2016/ ‘Projector’ column at Ravipurti in Gujarat Samachar Daily
‘वैदिक देवता वरुण को ग्रीक में ओरेनोस कहा जाता है और वैदिक भोर की देवी उषा को ग्रीक में औरोरा कहा जाता है। वेदों में क्रोध के लिए जाने-जाने वाले भगवान रुद्र देव (शिव) ग्रीक सभ्यता में क्रोधी देवता पोसायडन कहे जाते है। दोनों का मुख्य शस्त्र भी त्रिशूल ही है।‘
सबसे पहले हमने आज के मानव-डीएनए पर से जाना कि आज अफ्रीका के बाहर रहने वाले सभी मनुष्य 90,000 साल पहले अफ्रीका से बाहर निकले किसी एक ही मानव समूह के वंशज हैं। इस मानव समूह ने सबसे पहले वर्तमान अफगानिस्तान और बलूचिस्तान के क्षेत्र में वैदिक सभ्यता की स्थापना की। सदियाँ बितते-बितते उस सभ्यता में से लोगों के समूह दुनिया के अन्य हिस्सों में चले गए और नई सभ्यताओं का उदय हुआ। यह बात हमने विश्व के विविध शास्त्रों में मिले प्रमाणों के आधार पर सिद्ध की। हमने जाना कि वैदिक सभ्यता के लोगो ने ही स्थानान्तर करके विश्व की दूसरी सबसे प्राचीन मिस्र की सभ्यता का निर्माण किया था। और आज, इस यात्रा के अंतिम चरण में, हम जानेंगे कि मिस्र के बाद उत्पन्न हुई अन्य दो प्राचीन सभ्यताओं, ग्रीक और अब्राहमिक सभ्यताओं की जड़ें भी वैदिक संस्कृति में ही हैं।
पुराणों और महाभारत में ग्रीको को यवन कहा गया है। भारतीय शास्त्रों में यवनों का सबसे पहला उल्लेख ययाति से शुरू होता है। ययाति के चार पुत्रों में सबसे छोटे का नाम यवन था, जिसे ययाति ने पश्चिम के सबसे दूर के क्षेत्र में एक राज्य स्थापित करने के लिए कहा था। इस यवन के वंशज या एक अर्थ में उनके द्वारा स्थापित राज्य के नागरिक भारत में ‘यवन’ या ‘यूनानि’ कहलाते थे। वैदिक संस्कृति के ही एक राजकुमार द्वारा पश्चिम में जा के ग्रीक राज्य स्थापित करने का महाभारत का यह दावा, बीसवीं शताब्दी के इतिहासकार एलन डेनियलौ के इस प्रसिद्ध कथन में सच साबित होता है, ‘यूनानियों ने हमेशा कहा था कि भारत उनके देवता डायोनिसस की पवित्र भूमि थी। सिकंदर के इतिहासकारों ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि पुराण ही डायोनिसस की कहानियों का स्रोत हैं।‘
वैदिक सभ्यता के प्रारंभ में जब ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिमूर्ति का विचार नहीं आया था, तब स्वर्ग के देवताओं को पूज्य माना जाता था। देवता ऊपर स्वर्ग में रहते और मनुष्य धरती पर, मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देवताओं को प्रसन्न करते। बिलकुल इसी तरह की पौराणिक दंतकथाओ से ग्रीक संस्कृति की शुरुआत होती हैं। वहां भी स्वर्ग के देवता हैं और पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य हैं जो उनकी पूजा करते हैं। लेकिन वैदिक काल में बाद में पर-ब्रह्म और अद्वैतवाद का जो विज्ञान विकसित हुआ वह ग्रीक सभ्यता में कही नहीं पाया जाता हैं। यानी वैदिक संस्कृति में यह उत्क्रांति होने से पहले ही उसके एक समूह ने पश्चिम की और स्थानान्तर करके नयी ग्रीक सभ्यता स्थापित की थी, जिसमें वक़्त के साथ केवल देवताओं के नाम बदल गए थे।
वैदिक देवताओ में और ग्रीक देवताओ में कितनी समानता हैं यह देखते हैं। वेदों में आकाश के देवता और देवताओं के पिता को ‘द्रौशपितृ‘ कहा गया है, जिसे ‘डायस(Dyaus)’ भी कहा जाता है। यूनानी उसी आकाश देवता को ‘ज़ीयुस (Zeus)’ कहते हैं, जो देवताओं के पिता भी है। वैदिक देवता वरुण को ग्रीक में ओरेनोस कहा जाता है और वैदिक भोर की देवी उषा को ग्रीक में औरोरा कहा जाता है। वेदों में क्रोध के लिए जाने-जाने वाले भगवान रुद्र देव (शिव) ग्रीक सभ्यता में क्रोधी देवता पोसायडन कहे जाते है। समानता की हद यहाँ तक हैं कि दोनों का मुख्य शस्त्र भी त्रिशूल ही है। प्रजा उत्पन्न करने वाले वेदों के प्रजापति ग्रीक सभ्यता में प्रोटोगोनोस के नाम से जाने जाते हैं। प्रोटोगोनोस के चार सिर हैं, एक अजगर का, एक बैल का, एक मनुष्य का और एक देवता का। ब्रह्माण्ड पुराण में प्रजापति को भी चार मुख वाला (चतुर्मुख) कहा गया है। जहाँ उनका एक सिर देवता का, एक ऋषि का, एक पितृओ का और एक मनुष्य का है। भारतीय नामों को बदल के ग्रीक नाम देने की ग्रीको की यह प्रवृत्ति चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक के समय तक जारी रही। ग्रीस में चंद्रगुप्त मौर्य को एंड्रोकोटस और अशोक को एलीट्रोकेडस कहा जाता था।
वेदों में संस्कृत के श्लोकों के योग्य उच्चारण को ‘वाक‘ कहा गया है। ‘वाक‘ एक शक्तिशाली देवी है जो देवताओं को अपने भीतर धारण करके आगे बढ़ती है और लोगों में दिव्यता पैदा करती है। ग्रीक में इसी दिव्य उच्चारण को ‘लोगोस‘ कहा जाता है। वेदों में जो लोग सही तरीके से वाक का उच्चारण नहीं करते उन्हें ‘बार्बर‘ (तोतला) कहा जाता है। ग्रीक में उन्हें ‘बार्बरोई‘ कहा गया है। प्राचीन ग्रीक लेखक होमर द्वारा लिखित इलियड और ओडिसी नाम के महाकाव्यो में चित्रित सामाजिक जीवन और वेदो तथा महाभारत में चित्रित सामाजिक जीवन के बीच एक अद्भुत समानता है। होमर की रचनाओं में चित्रित देवता घोड़ों द्वारा खींचे गए रथों में आते हैं। जब कि घोड़े से चलने वाले रथ केवल वैदिक आर्यों की पहचान थे।
अब बात अब्राहम की। अब्राहम यानी यहूदियों और आरबों के पूर्वज। अब्राहम के दो बेटे थे। एक इसाक और दूसरा इस्माइल। इसाक के वंशज यहूदी कहलाए और इस्माइल के वंशज आरब कहलाए। यहूदीओ में पैदा हुए जीसस ने यहूदियों में ईसाई धर्म को जन्म दिया, जबकि अरबों में से मोहम्मद ने जन्म लेकर इस्लाम धर्म को शुरू किया। सन 37 से 100 के बीच हुए प्रसिद्द यहूदी इतिहासकार फ्लेवियस जोसेफस ने नोट किया हैं कि ‘सॉक्रेटीस, प्लूटो और एरिस्टोटल सभी ऐसा कहते थे की यहूदी भारत से आए उस ब्राह्मण दार्शनिक अब्राहम के वंशज हैं।‘ एरिस्टोटल के समकालीन इतिहासकार क्लिअरकुश लिखते हैं कि ‘यहूदी भारतीय दार्शनिको के वंशज हैं जिन्होंने भारत से सीरिया स्थानान्तर किया था।‘ ईसा पूर्व 300 में, सेल्यूकस निकेटर (चंद्रगुप्त मौर्य ka एक ससुर) ने मेगास्ठेन्स नाम के एक संशोधक को भारत भेजा था, जिसने अपने संशोधन में नोट किया कि ‘यहूदी मूल रूप से पश्चिमी भारत की कला जाति के ब्राह्मण हैं।’
अठारहवीं शताब्दी के सबसे महान आत्मज्ञानी लेखक और विचारक माने जाने वाले वॉल्टर ने लिखा है कि ‘अब्राहम भारत के पश्चिमी सिरे से आने वाले एक ब्राह्मण थे जिन्होंने पश्चिम में ज्ञान फैलाने के लिए भारत छोडा था।‘ बाइबल के पुराने नियम में कहा हैं की, अब्राहम पूर्व के क्षेत्र ‘चोलडियन उर‘ से स्थानान्तर करके पश्चिम के बेबीलोन प्रदेश में गए थे, जहाँ उन्होंने एकेश्वरवाद का प्रचार किया। ‘उर‘ का अर्थ है ‘प्रदेश‘। चौलडियन मूल रूप से प्राचीन काल के ‘कौल पंडितों‘ रूपी कश्मीरी ब्राह्मणों की एक जाति थी, जो उस समय वर्तमान अफगानिस्तान तक फैली हुई थी। अब्राहम जिस उर प्रदेश से आए होने का माना जाता हैं, वह आज के अफ़ग़ानिस्तान और ईरान की सिमा पर आया बेक्टेरिया प्रदेश हैं ऐसा संशोधक और प्राचीन ईरानी मानते हैं।
अब्राहम के नाम का अर्थ भी कश्मीरी पंडितों की भाषा से ही मिलता है। ‘अब‘ का मतलब कश्मीरी में पिता होता है और ‘रहम्‘ शब्द ‘राम‘ शब्द से आया हैं जिसका अर्थ है ‘सर्वोच्य ब्राह्मण‘। इस प्रकार, अब्राहम कश्मीरी पंडितों की ही एक जाति के ब्राह्मण थे, जिन्होंने एकेश्वरवाद फैलाने के लिए पश्चिम की यात्रा की और यहूदियों और अरबों के जनक बने। यहूदी अपने कश्मीरी मूल के बारे में जानते थे। इसीलिए तो, जब-जब यहूदियों पर अत्याचार हुए, तब-तब उनके समूह सीधे कश्मीर में आ के बसे। मूसा जैसे पैगंबर भी अंतिम समय में कश्मीर में रहे थे ऐसे संकेत मिले हैं। मुस्लिम धर्मांतरण से पहले, कश्मीर में यहूदियों की आबादी अच्छी खासी थी।
इस प्रकार, दुनिया में ऐसी कोई भी सभ्यता नहीं है जिसकी जड़ें पूर्व की प्राचीन भारतीय सभ्यता में न हो। ये तथ्य उन वैज्ञानिक और आनुवंशिक प्रमाणों की पुष्टि करते हैं कि भारतीय सभ्यता से मानवों के समुह अलग होकर ही दुनिया की सारी सभ्यताओं का जन्म हुआ है।