मिस्र की पिरामिडोवाली सभ्यता भारतीयों द्वारा बनाई गई थी

Published on September 24, 2016/ ‘Projector’ column at Ravipurti in Gujarat Samachar Daily

'मिस्र ने भारत से जो धर्म पाया, उसमे काफ़ी समानता हैं। मिस्र में भी आर्यों के जैसी चार वर्णों में विभाजित सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें पुजारी सर्वोच्च हैं, राजा द्वितीय, व्यापारी तीसरा और मज़दूर चौथा हैं।’

सिविल सर्विसिस की परीक्षाओं के लिए, यदि आप अभी भी आउट ऑफ़ कोंटेक्स हो चुके इतिहास पढ़ रहे हैं कि मानवसभ्यता का उद्गम स्थल यानी मिस्र की सभ्यता‘, तो सतर्क हो जाइए क्योंकि बहुत जल्द वैश्विक स्तर पर यह इतिहास बदल सकता हैं। IIT खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के वैज्ञानिकों ने सालो के संशोधन बाद ऐसे प्रमाण प्रस्तुत किये हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे पाँच हज़ार साल पुराना माना जाता है, वह वास्तव में नौ हज़ार साल (७००० ईसा पूर्व) पुरानी है। इस प्रकार यह प्राचीन मिस्र की सभ्यता से एक हज़ार वर्ष से भी अधिक पुरानी है और इसी साल (२०१६) २५ मई को विश्व की सबसे सम्मानिय पत्रिकाओ में से एक नेचरने भारतीय वैज्ञानिकों की इस खोज को इन शब्दों के साथ प्रकाशित किया हैं कि दुनियाभर में इतिहास की पाठ्यपुस्तकों को फिर से लिखने का समय आ गया है।‘ 

वास्तव में यह खोज कोई आज की नहीं है। ईसा पूर्व के समय में, प्रसिद्ध यूनानी लेखक उसेबियस ने लिखा था कि शुरुआती मिस्रवासी सिंधु तट से स्थानांतर करके मिस्र में आए थे।‘ 

   सन १६४२ में ब्रिटिश इतिहासकार एडवर्ड पोकोक कहते हैं की, ‘ सिन्धु के मुहाने (उदगम) के पास समुद्री, साहसिक और सक्रिय लोग रहते थे जो पश्चिम की ओर सिविल सर्विसिस की परीक्षाओं के लिए, यदि आप अभी भी आउट ऑफ़ कोंटेक्स हो चुके इतिहास पढ़ रहे हैं कि मानवसभ्यता का उद्गम स्थल यानी मिस्र की सभ्यता‘, तो सतर्क हो जाइए क्योंकि बहुत जल्द वैश्विक स्तर पर यह इतिहास बदल सकता हैं। IIT खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के वैज्ञानिकों ने सालो के संशोधन बाद ऐसे प्रमाण प्रस्तुत किये हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे पाँच हज़ार साल पुराना माना जाता है, वह वास्तव में नौ हज़ार साल (७००० ईसा पूर्व) पुरानी है। इस प्रकार यह प्राचीन मिस्र की सभ्यता से एक हज़ार वर्ष से भी अधिक पुरानी है और इसी साल (२०१६) २५ मई को विश्व की सबसे सम्मानिय पत्रिकाओ में से एक नेचरने भारतीय वैज्ञानिकों की इस खोज को इन शब्दों के साथ प्रकाशित किया हैं कि दुनियाभर में इतिहास की पाठ्यपुस्तकों को फिर से लिखने का समय आ गया है।‘ 

 

वास्तव में यह खोज कोई आज की नहीं है। ईसा पूर्व के समय में, प्रसिद्ध यूनानी लेखक उसेबियस ने लिखा था कि शुरुआती मिस्रवासी सिंधु तट से स्थानांतर करके मिस्र में आए थे।‘ 

 

   सन १६४२ में ब्रिटिश इतिहासकार एडवर्ड पोकोक कहते हैं की, ‘ सिन्धु के मुहाने (उदगम) के पास समुद्री, साहसिक और सक्रिय लोग रहते थे जो पश्चिम की ओर स्थानांतर करते रहे और उन्होंने लाल सागर को पार करके मिस्र, नाबिया और एबिसिनिया के राज्यों को स्थापित किया था। 

 

अठारहवीं शताब्दी के इजिप्तोलोजिस्टअर्नोल्ड हरमन लुडविग केरेन ने कहा है की, “यह पूरी तरह से मान लेना चाहिए कि सिंधु तट के व्यापारिक परिवार अफ्रीका गए और वहां न केवल उनका व्यवसाय बल्कि, उनका धर्म भी ले गए।

 

          सर विलियम जोन्स कहते हैं की, ‘दुनिया ने एक स्वर से कहा है कि इथोपिया की सभ्यता हिंदुओं द्वारा शुरू की गई थी। इथोपिया और भारत दोनों की सभ्यताओं का निर्माण की एक ही महान जाति के लोगो द्वारा किया गया था। स्कंध पुराण में मिस्र को सच-द्वीप कहा गया है।

 

फ्रेंच लेखक लुईस जैकोलियट लिखते हैं कि मिस्र ने भारत से जो धर्म पाया हैं उसमे काफ़ी समानता हैं। मिस्र में भी आर्यों के जैसी चार वर्णों में विभाजित सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें पुजारी सर्वोच्च है, राजा द्वितीय, व्यापारी तीसरा और मज़दूर चौथा हैं। मिस्रवासी भी सूर्य को अपना मुख्य देवता मानते हैं और गायों, नदियों, पर्वतो और वृक्षों की पूजा करते हैं। मिस्र में भी ब्रह्मांड के निर्माण से पहले आदिजल की एक कहानी है। हिंदुओं में ब्रह्मजल से विष्णु और विष्णु की नाभि से कमल निकलता है, उसी तरह प्राचीन मिस्र में आदिजल से एक ढेर बनता हैं और उस ढेर से कमल निकलता है। भारत में, उस कमल पर ब्रह्मा बैठते हैं और ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं, जबकि मिस्र में, उस कमल पर उनके मुख्य देवता रा‘(सूर्य) बैठते हैं और ब्रह्मांड को प्रकाशित करते हैं। आर्यों की अदिति मिस्र में आइसिस है। मिस्र और बेबीलोन का पूरा खगोल विज्ञान सम्पूर्णत: भारतीयों की तरह ही हैं।‘ 

 

भारतीयों की मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की मान्यता ही मिस्त्र में लोगो मे मृत्यु के बाद फिर उसी शरीर में जन्म लेने की मान्यता रूप में परिवर्तित हुई थी। इसी लिए वह शवो को भारत मे से ही आते सूत के कपडे में लपेटकर पिरामिडो में रखते थे। अब तो लोथल और मोहेंजोदारो में भी सूती कपड़े में लिपटी ऐसी ममी मिली है जो यह संकेत देती है कि सिंधु-घाटी संस्कृति में भी कुछ-कुछ समूहों में यह मान्यता थी और उसी समूहों ने मिस्त्र की तरफ़ स्थानांतर किया हो सकता हैं। उन्नीसवीं सदी के प्रसिद्ध लेखक एडॉल्फ इर्मन कहते है कि “प्राचीन मिस्र के लोग कहते थे कि वे कोई पुंटनामके क्षेत्र से आए हैं। वे इस क्षेत्र का वर्णन करते हुए कहते थे की, ‘यह क्षेत्र समुद्रों से घिरा हुआ था, असंख्य घाटियाँ और नदियाँ थींधूप, कीमती धातुएँ, तेंदुए, बाघ, कुत्ते और लंबी पूंछ वाले बंदर थे। वहाँ बहुत से ऊँचे-ऊँचे पेड़ और उपवन थे।यह विवरण किसी भी तरह से भारत के अलावा किसी अन्य देश की तरफ़ इशारा नहीं करता।” प्राचीन मिस्र के मंदिरों में पाई जाने वाली बौने (वामन) मनुष्य की मूर्तियाँ भारत में पाई जाने वाली बौने यक्षकी मूर्तियों के जैसी ही हैं। 

 

एम्पायर ऑफ सोल्सनामक पुस्तक में, पॉल विलियम रॉबर्ट्स कहते हैं कि वर्तमान शोध स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि वैदिक सभ्यता एक खोई हुई सभ्यता है जिसे प्राचीन मिस्रिवासियों और वर्तमान भारतीयोंने अपनाया था।इसके अलावा मिस्त्र की संस्कृति के उदभव के सम्बंधित अनेक इतिहासकारों और लेखको की कई किताबें, पत्रिकाएँ और लेख भरे पड़े हैं, लेकिन हम इस सूचि को मिस्त्र के इतिहास के सम्बंधित सबसे विश्वसनीय इतिहासकार हेनरिक कार्ल बुरगच के शब्दों से समाप्त करेंगे, ‘हमारे पास अधिकार हैं संदेह से ज़्यादा विश्वास करने का की आठ हज़ार साल पहले भारत ने मिस्त्र् में अपनी एक वसाहत भेजी, जो अपने साथ अपनी कला और सभ्यता ले गयी और उन्होंने प्राचीन मिस्त्र की संस्कृति की शुरुआत की।’ 

 

तो फिर सवाल यह है कि सदियों से इतने प्रसिद्ध इतिहासकारों के दावों के बावजूद हम यह क्यों पढ़ते रहे हैं कि मिस्र दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है? इसका कारण था भारत की गुलामी। जब तक अंग्रेज थे, तब तक उन्होंने मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं को ही मनुष्य सभ्यता का उदगमस्थान बताने की कोशिश की क्योंकि उन सभ्यताओं को आज की पश्चिमी सभ्यता का जनक माना जाता है। अंग्रेजों के जाने के बाद उनके चेलो जैसे वामपंथी और स्यूडो सेक्युलर आए जिनमे अंग्रेजो ने उनकी खुद की सभ्यता के प्रति ही हीनभावना पैदा की थी। 

 

लेकिन क़िस्मत तब बदली जब फ्रेंच पुरातत्वविद् जीन फ्रेंकोइस गेरी के नेतृत्व में बलूचिस्तान के मेहरगाह में १९७४ से १९८६ और १९९७ से २००० तक खुदाई की गई और वहाँ सिन्धु घाटी की सभ्यता की शुरुआत को दर्शाता लगभग दो वर्ग किलोमीटर में फैला एक शहर मिला। जब रेडियोकार्बन डेटिंग से उसका समय खोजा गया तब स्थापित इतिहास पर अब तक का सबसे बड़ा प्रहार हुआ। क्योकि यह शहर ईसा पूर्व ७००० में बना था। यानी की आज से नौ हज़ार वर्ष पहले। जबकि मानवसभ्यता का जनक माने जाने वाले मिस्त्र की संस्कृति के सबसे पुराने अवशेष ईसा पूर्व ६००० के आसपास मिलते हैं। मतलब सिंधु घाटी सभ्यता का यह शहर मिस्र की सभ्यता के अस्तित्व में आने से एक हज़ार साल पहले से ही अस्तित्व में था। इसके बाद, IIT खड़गपुर और ASI के वैज्ञानिकों ने मेहरगाह, भिराना और राखीगरी (हरियाणा), लोथल, धोलावीरा, कालीबंगा, मोहेंजोदारो और लोथल सहित सभी सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों पर लगातार अध्ययन किया और सिंधु घाटी सभ्यता को विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता साबित करते अंतिम वैज्ञानिक प्रमाण नेचर मेगेजिन के ज़रिये दुनिया के सामने रखे। इस घोषणा ने मानव सभ्यता के उदभव के बारे में वैश्विक पुनर्विचार को गति दी है। खैर, दुनिया में इतिहास की किताबों को हर छह साल में नए संशोधनो के अनुसार बदलाव किये जाते हैं, इसलिए वहाँ तो इतिहास बदल जाएगा। लेकिन उदारता के नाम पर निष्क्रिय हो चुकी भारत की व्यवस्था को देखकर लगता है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को भी सिविल सर्विसिस के पेपरों में मिस्र को ही मानव सभ्यता का उदभव स्थान लिखना होगा  स्थानांतर करते रहे और उन्होंने लाल सागर को पार करके मिस्र, नाबिया और एबिसिनिया के राज्यों को स्थापित किया था। 

अठारहवीं शताब्दी के इजिप्तोलोजिस्टअर्नोल्ड हरमन लुडविग केरेन ने कहा है की, “यह पूरी तरह से मान लेना चाहिए कि सिंधु तट के व्यापारिक परिवार अफ्रीका गए और वहां न केवल उनका व्यवसाय बल्कि, उनका धर्म भी ले गए।

सर विलियम जोन्स कहते हैं की, ‘दुनिया ने एक स्वर से कहा है कि इथोपिया की सभ्यता हिंदुओं द्वारा शुरू की गई थी। इथोपिया और भारत दोनों की सभ्यताओं का निर्माण की एक ही महान जाति के लोगो द्वारा किया गया था। स्कंध पुराण में मिस्र को सच-द्वीप कहा गया है।

फ्रेंच लेखक लुईस जैकोलियट लिखते हैं कि मिस्र ने भारत से जो धर्म पाया हैं उसमे काफ़ी समानता हैं। मिस्र में भी आर्यों के जैसी चार वर्णों में विभाजित सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें पुजारी सर्वोच्च है, राजा द्वितीय, व्यापारी तीसरा और मज़दूर चौथा हैं। मिस्रवासी भी सूर्य को अपना मुख्य देवता मानते हैं और गायों, नदियों, पर्वतो और वृक्षों की पूजा करते हैं। मिस्र में भी ब्रह्मांड के निर्माण से पहले आदिजल की एक कहानी है। हिंदुओं में ब्रह्मजल से विष्णु और विष्णु की नाभि से कमल निकलता है, उसी तरह प्राचीन मिस्र में आदिजल से एक ढेर बनता हैं और उस ढेर से कमल निकलता है। भारत में, उस कमल पर ब्रह्मा बैठते हैं और ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं, जबकि मिस्र में, उस कमल पर उनके मुख्य देवता रा‘(सूर्य) बैठते हैं और ब्रह्मांड को प्रकाशित करते हैं। आर्यों की अदिति मिस्र में आइसिस है। मिस्र और बेबीलोन का पूरा खगोल विज्ञान सम्पूर्णत: भारतीयों की तरह ही हैं।‘ 

भारतीयों की मृत्यु के बाद पुनर्जन्म की मान्यता ही मिस्त्र में लोगो मे मृत्यु के बाद फिर उसी शरीर में जन्म लेने की मान्यता रूप में परिवर्तित हुई थी। इसी लिए वह शवो को भारत मे से ही आते सूत के कपडे में लपेटकर पिरामिडो में रखते थे। अब तो लोथल और मोहेंजोदारो में भी सूती कपड़े में लिपटी ऐसी ममी मिली है जो यह संकेत देती है कि सिंधु-घाटी संस्कृति में भी कुछ-कुछ समूहों में यह मान्यता थी और उसी समूहों ने मिस्त्र की तरफ़ स्थानांतर किया हो सकता हैं। उन्नीसवीं सदी के प्रसिद्ध लेखक एडॉल्फ इर्मन कहते है कि “प्राचीन मिस्र के लोग कहते थे कि वे कोई पुंटनामके क्षेत्र से आए हैं। वे इस क्षेत्र का वर्णन करते हुए कहते थे की, ‘यह क्षेत्र समुद्रों से घिरा हुआ था, असंख्य घाटियाँ और नदियाँ थींधूप, कीमती धातुएँ, तेंदुए, बाघ, कुत्ते और लंबी पूंछ वाले बंदर थे। वहाँ बहुत से ऊँचे-ऊँचे पेड़ और उपवन थे।यह विवरण किसी भी तरह से भारत के अलावा किसी अन्य देश की तरफ़ इशारा नहीं करता।” प्राचीन मिस्र के मंदिरों में पाई जाने वाली बौने (वामन) मनुष्य की मूर्तियाँ भारत में पाई जाने वाली बौने यक्षकी मूर्तियों के जैसी ही हैं। 

एम्पायर ऑफ सोल्सनामक पुस्तक में, पॉल विलियम रॉबर्ट्स कहते हैं कि वर्तमान शोध स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि वैदिक सभ्यता एक खोई हुई सभ्यता है जिसे प्राचीन मिस्रिवासियों और वर्तमान भारतीयोंने अपनाया था।इसके अलावा मिस्त्र की संस्कृति के उदभव के सम्बंधित अनेक इतिहासकारों और लेखको की कई किताबें, पत्रिकाएँ और लेख भरे पड़े हैं, लेकिन हम इस सूचि को मिस्त्र के इतिहास के सम्बंधित सबसे विश्वसनीय इतिहासकार हेनरिक कार्ल बुरगच के शब्दों से समाप्त करेंगे, ‘हमारे पास अधिकार हैं संदेह से ज़्यादा विश्वास करने का की आठ हज़ार साल पहले भारत ने मिस्त्र् में अपनी एक वसाहत भेजी, जो अपने साथ अपनी कला और सभ्यता ले गयी और उन्होंने प्राचीन मिस्त्र की संस्कृति की शुरुआत की।’ 

तो फिर सवाल यह है कि सदियों से इतने प्रसिद्ध इतिहासकारों के दावों के बावजूद हम यह क्यों पढ़ते रहे हैं कि मिस्र दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है? इसका कारण था भारत की गुलामी। जब तक अंग्रेज थे, तब तक उन्होंने मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं को ही मनुष्य सभ्यता का उदगमस्थान बताने की कोशिश की क्योंकि उन सभ्यताओं को आज की पश्चिमी सभ्यता का जनक माना जाता है। अंग्रेजों के जाने के बाद उनके चेलो जैसे वामपंथी और स्यूडो सेक्युलर आए जिनमे अंग्रेजो ने उनकी खुद की सभ्यता के प्रति ही हीनभावना पैदा की थी। 

लेकिन क़िस्मत तब बदली जब फ्रेंच पुरातत्वविद् जीन फ्रेंकोइस गेरी के नेतृत्व में बलूचिस्तान के मेहरगाह में १९७४ से १९८६ और १९९७ से २००० तक खुदाई की गई और वहाँ सिन्धु घाटी की सभ्यता की शुरुआत को दर्शाता लगभग दो वर्ग किलोमीटर में फैला एक शहर मिला। जब रेडियोकार्बन डेटिंग से उसका समय खोजा गया तब स्थापित इतिहास पर अब तक का सबसे बड़ा प्रहार हुआ। क्योकि यह शहर ईसा पूर्व ७००० में बना था। यानी की आज से नौ हज़ार वर्ष पहले। जबकि मानवसभ्यता का जनक माने जाने वाले मिस्त्र की संस्कृति के सबसे पुराने अवशेष ईसा पूर्व ६००० के आसपास मिलते हैं। मतलब सिंधु घाटी सभ्यता का यह शहर मिस्र की सभ्यता के अस्तित्व में आने से एक हज़ार साल पहले से ही अस्तित्व में था। इसके बाद, IIT खड़गपुर और ASI के वैज्ञानिकों ने मेहरगाह, भिराना और राखीगरी (हरियाणा), लोथल, धोलावीरा, कालीबंगा, मोहेंजोदारो और लोथल सहित सभी सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों पर लगातार अध्ययन किया और सिंधु घाटी सभ्यता को विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता साबित करते अंतिम वैज्ञानिक प्रमाण नेचर मेगेजिन के ज़रिये दुनिया के सामने रखे। इस घोषणा ने मानव सभ्यता के उदभव के बारे में वैश्विक पुनर्विचार को गति दी है। खैर, दुनिया में इतिहास की किताबों को हर छह साल में नए संशोधनो के अनुसार बदलाव किये जाते हैं, इसलिए वहाँ तो इतिहास बदल जाएगा। लेकिन उदारता के नाम पर निष्क्रिय हो चुकी भारत की व्यवस्था को देखकर लगता है कि हमारी आने वाली पीढ़ी को भी सिविल सर्विसिस के पेपरों में मिस्र को ही मानव सभ्यता का उदभव स्थान लिखना होगा।