Published on September 17, 2016/ ‘Projector’ column at Ravipurti in Gujarat Samachar Daily
‘हिंदू शास्त्र और सभ्यता किसी एक धर्म की ही सभ्यता नहीं हैं। यह अफ्रीका से निकले उन सभी पहले मनुष्यो का दस्तावेज हैं, जिन्हे हम भारतीयोने इतने हजारो सालो तक मानवजाति की एक अमूल्य विरासत की तरह संभाल के रखा हैं।‘
पिछले लेख में हमने अफ्रीका से बाहर निकली मानवजाति का विश्वव्यापी स्थानान्तरण उनकी डीएनए रिपोर्ट से देखा। आज हम देखेंगे की, अफ्रीका से बाहर निकले उस जनसमूह ने जो शास्त्र लिखे उनमे उनकी एक संयुक्त शरुआत के क्या संकेत मिलते हैं।
भारतीय शास्त्रों में समय की शुरुआत को ‘सतयुग’ या ‘क्रित-युग’ के रूप में वर्णित किया गया है। आदम और इव के उस इश्वर के द्वारा मना किये गए फल को खाने से पहले ऐसे ही एक स्वर्ण युग का उल्लेख बाईबल पुराने नियम में भी किया गया है। अब, दोनों ही शास्त्र इस सतयुग के अंतिम दिनों में मानव जाति के एक रक्षक की बात करते हैं। भारतीय शास्त्रों में उन्हें ‘मनु’ और बाइबिल में उन्हें ‘नोह’ कहा गया है।
सतयुग के अंत में भगवान स्वयं मछली के रूप में मनु के पास आए और कहा कि आज से कुछ समय बाद एक भयानक बाढ़ आएगी और मानव वसाहत के इस क्षेत्र को पानी से ढक देगी। इसलिए मनु को एक बड़ा जहाज़ बनाना हैं और मनुष्यों सहित अन्य सभी जीवों के कुछ प्रतिनिधियों को एक बीज के रूप में उस जहाज़ में डालकर यहाँ से ले जाना हैं। ठीक इसी तरह परमेश्वर के स्वर्गदूत बाइबल में नोह के पास आए और उसे एक बड़े जहाज़ में सभी जीवित चीजों के बीज ले जाने का आदेश दिया। मनु और नोह ने परमेश्वर के कहने के अनुसार किया और बाढ़ के समय सभी जानवरों और वनस्पतियो के बीज जहाज़ में साथ लेकर वह निकल गए और जहाज़ को एक पर्वत की चोटी पर खड़ा कर दिया। मनु की कथा में इस पर्वत को मलय पर्वत कहते हैं और नोह की कथा के अनुसार इसे ‘हर-मेनी’ पर्वत कहते हैं। जब पानी कम हुआ, तब सभी प्राणियों के उन बीजो में से सजीव सृष्टि का विकास हुआ। मनु के वंशज ही ‘मनु-ष्य’ कहलाये जिस पर से फिर ‘मान-व’ , ‘मेन,’ ह्यू-मन ‘ आदि नाम अपभ्रंश हुए।
अब, बेबिलियोन संस्कृति के शास्त्रों में भी बिलकुल यही बात ‘उतनापिश्तिम’ नाम के रक्षक के नाम से कही गयी हैं। ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के बीच भी मानव जाति के रक्षक की बिल्कुल ऐसी ही कहानी है। तो क्या दुनिया की हर सभ्यता में बाढ़ आई और हर जगह रहने वाले लोगों में से किसी एक के पास ईश्वर कोई ना कोई रूप में आये और उन सभी को नाव बनाने और जीवित प्राणियों के बीज लेके पहाड़ की चोटी पर पहुँचने के लिए कहा? या फिर एक और तर्क हैं जो सच होने की सम्भावना अधिक प्रबल हैं। वह ये की वास्तव में, यह एक ही घटना है, जिसका वर्णन मानव जाति के शुरुआती समूहों में से एक ने अपने शास्त्रों में किया है। और जब मनुष्यों के अलग अलग समूह उस मूल समूह से अलग होकर अन्य स्थानों पर जा बसे, और नई सभ्यताओं को जन्म दिया, तब मनु, नोह या उतनापिश्तिम नाम से मानव जाति के मूल रक्षक की बात उस सभ्यता में जारी रही।
इन रक्षको के अलग-अलग नामों के पीछे भी समानताएँ हैं। मनु को संस्कृत में मनु: (मनुह) के रूप में उच्चारित किया जाता है। मनुह से ‘मनोह’ और फिर उसमें से धीरे-धीरे ‘नोह’ हुआ। महाभारत में मनु के एक पुत्र उत्तानपाद की बात आती है जिसका राज्य पश्चिम में था। वहीं भक्त ध्रुव ke पिता उत्तानपाद। माना जाता हैं कि मनु की कथा बेबिलियोन में मनु के पुत्र उत्तानपाद के नाम से जोड़ी गयी होगी, जो बाद में उतनापिश्तिम हो गया होगा। और ऐसा तभी हो सकता हैं, जब बाइबल और बेबिलियोन की संस्कृति शुरू करने वाले लोग कभी मनु की कथा लिखने वाली उस प्राम्भिक सभ्यता के हिस्सा रहे हो।
इस तर्क का एक और प्रमाण यह है कि केवल एक वैदिक सभ्यता ही है जिसके शास्त्रों में अफ्रीका का वर्णन है। महाभारत, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और गुजराती भक्तकवि पानबाई के भजनो में भी जिसकी अक्सर बात की गयी हैं, वह’ मेरु पर्वत’ असल में अफ्रीका में हैं। जी हाँ, ‘माउन्ट मेरु’ यानी की मेरु पर्वत, अफ्रीका के तंजानिया के आरुश नामके शहर में स्थित है। आरुश प्रदेश जिस नदी के किनारे बसा है उस नदी का नाम उषा है। महाभारत में आरुष क्षेत्र से आयी हुई मनु की बेटी आरुषि का उल्लेख है। तंजानिया ही वह प्रदेश हैं, जहाँ से आधुनिक मानव भारतीय उपमहाद्वीप की ओर स्थानांतर करने के लिए अफ्रीका से बाहर निकले थे। लेकिन जिस साक्ष्य ने दुनिया भर में काफ़ी सन्नाटा फैला दिया, वह हैं अफ्रीका की प्रसिद्ध नाइल नदी का उल्लेख हमारे पुराणों में मिलना।
उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में, सर रिचर्ड बर्ट ने अपने कमीशन के साथ, तन्गान्यिका झील के पास नाइल नदी के स्रोत की खोज की, लेकिन वह खोज सही होने का अभी तक कोई सबूत नहीं मिला था। ऐसे में सन १८४४ में जॉन स्पीक नाम का एक अंग्रेज भारत के एक बनारसी पंडित के संपर्क में आया। पंडित ने उससे कहा, “नाइल का मुंह जो आपने खोजा है वह ग़लत है। हमारी पौराणिक कथाओं में, नाइल नदी को दो नामों से जाना जाता है, ‘नीला’ और ‘काली’। और दोनों का मुंह सोमगिरी पर्वत की घाटी में एक विशाल झील में है।” रॉबर्ट स्पीक को सोमगिरि का अंग्रेज़ी में अनुवाद करने पता चला की ‘सोम’ यानी ‘मून’ और ‘गिरी’ यानी ‘माउन्टेन’। वह पंडित असल में मध्य अफ्रीका में प्रसिद्ध मून माउंटेन की घाटी में स्थित में विक्टोरिया झील के बारे में बात कर रहे थे। स्पीक ने नाइल एक्सपेंडिक्टर कमीशन को पत्र लिखकर यह बात बताई और जाँच करने पर पंडित की बात सही साबित हुई। नाइल नदी का असली स्रोत वहीं मिला जहाँ पंडित ने कहा था। जॉन स्पीक ने इस बात का उल्लेख १८६३ में प्रकाशित उनकी पुस्तक, ‘जर्नल ऑफ द डिस्कवरी ऑफ द सोर्स ऑफ द नाइल’ में किया हैं।
भारतीय शास्त्रों के इन सभी विवरणों से ऐसा प्रतीत होता है कि अफ्रीका से निकले हुए मनुष्य अपनी मातृभूमि अफ्रीका को नहीं भूले थे| मेरु पर्वत उनके लिए आस्था का केंद्र था। जहाँ कहीं भी उन्होंने एक ऊँचा पर्वत देखा, वे उसे मेरु कहते थे या उसकी तुलना मेरु से करते थे। मेरु पर्वत को उन्होंने धरती का केंद्र कहा, जहां देवता निवास करते थे। कुछ पश्चिमी खोजकर्ता मेरु पर्वत को वही हर-मेनी पर्वत मानते हैं, जहाँ नोह ने अपना जहाज़ खड़ा किया था। क्योंकि अफ्रीका में मेरु को ‘मेनी पर्वत’ भी कहा जाता है।
मनु या नोह के समय के सतयुग के बारे में भी, अब यह माना जा सकता है कि आधुनिक मानव जो अफ्रीका से उत्तर में लीवेन्ट की तरफ़ सबसे पहला स्थानांतर करके क्रीट द्वीप पर बस गए, वह सभ्यता ही शायद सतयुग या ‘क्रीत युग’ सभ्यता रही होगी। क्योंकि उस द्वीप का नाम ‘क्रीत’ कैसे पड़ा उसकी पश्चिम में कोई जानकारी नहीं है। ग्रीक या किसी अन्य पश्चिमी भाषा में ऐसा कोई शब्द ही नहीं है। हो सकता हे यह संस्कृत शब्द ‘क्रीत’ से ही आया हो। हो सकता है कि वह सभ्यता जब बाढ़ और शीत युग की वज़ह से नष्ट हुई, तभी मनु जैसा कोई एक रक्षक सजीवों के समूह को वापिस अफ्रीका में मेरु पर्वत तक ले आया हो। और १० हज़ार साल बाद जब आधुनिक मानव ने अफ्रीका से दूसरी बार बाहर निकलकर भारतीय उपमहाद्वीप की ओर नयी सभ्यता की स्थापना की, तब ‘क्रीत’ -युग’ और मनु की कहानी के साथ ही अपने शास्त्रों की शुरुआत की हो। और तब से, जो भी अलग-अलग मनुष्य या जाती उनके संपर्क में आयी उनको उन्होंने मनु के ही पुत्र या पुत्री की पहचान देकर शेष मानवजाति के साथ एक सूत्र में बाँधने की कोशिश की हो। इसी वज़ह से उत्तानपाद और आरुषि जैसे मनु के कुछ पुत्र और पुत्री सुदूर पश्चिम से आते है, तो इला जैसी कुछ पुत्रियाँ तिब्बत और मध्य एशिया के प्रदेश से भी मिलती है।
तो इस प्रकार, हिंदू शास्त्र और सभ्यता किसी एक धर्म की ही सभ्यता नहीं हैं। यह अफ्रीका से निकले उन सभी पहले मनुष्यो का दस्तावेज हैं, जिन्हे हम भारतीयोने इतने हजारो सालो तक मानवजाति की एक अमूल्य विरासत की तरह संभाल के रखा हैं। हम शुरुआती मानव समाज के वह प्रतिनिधि है जिन्होंने युगों तक नीत नवीनता बनाए रखते हुए भी अपनी चिर-पुरातन शुरुआत के अवशेषों को संभाला हुआ है।