Published on September 10, 2016/ ‘Projector’ column at Ravipurti in Gujarat Samachar Daily
"डीएनए की यह वैज्ञानिक शोध हमें यह उत्तर देती है कि सिंधु घाटी की वैदिक सभ्यता अफ्रीका से बाहर निकलें मनुष्यों के सर्वप्रथम समूह द्वारा निर्मित की गयी एक सभ्यता थी, जहाँ से लोग समय-समय पर स्थानांतर करके अलग-अलग प्रदेशो में गए।"
यह अब सर्वविदित है कि मनुष्य की उत्पत्ति अफ्रीका महाद्वीप में हुई થી। अफ्रीका के जंगलों में ही चिंपैंजी से होमो इरेक्टस जैसे आदिमानवो की उत्क्रांति हुई। अफ्रीका से शेष विश्व में मानव जाति कैसे फैल गई उसकी अब तक एक थियरी थी। इस थियरी के अनुसार होमो इरेक्टस नामके आदिमानव ही अफ्रीका से बहार निकले और यूरोप, मध्यपूर्व और भारतीय उपमहाद्वीप के मार्ग से पूरी दुनिया मे फैले। और समय के साथ पूरी दुनिया मे फैले यह आदिमानव दुनिया के अलग-अलग प्रदेश मे आधुनिक मानव के रूप में होमो सेपियंस में यानी की हम मे विकसित हुए। यह थियरी पहले मानव कोशिकाओं में मौजूद Y गुणसूत्र पर आधारित थी। लेकिन, पिछले कुछ दशकों में, विज्ञान ने प्रगति की है और अब कोशिकाओं (cells) के सूत्रकनीका (Mitochondria) में मौजूद डीएनए की भी जांच की जा सकती है। और इस खोज ने मानव इतिहास के बारे में हमारी समझ को एक नया मोड़ दे दिया है।
सूत्रकाणिक डीएनए की एक विशेषता यह है कि यह केवल महिलाओं में मौजूद होता है। यानी यह माँ से बेटी को ही विरासत में मिलता है, बेटे को नहीं। यानी की पुरुष में भी सूत्रकाणिक डीएनए होता है, पर पुरुष वह अपनी संतान को नहीं दे सकता। वह सिर्फ स्त्री से संतान में ही आ सकता है। इससे एक व्यक्ति को जन्म देनेवाली उसकी माँ का मूल जानने का मौका मिला। यह काम 1990 के दशक में शुरू हुआ था और इसकी शुरुआत करने वालो में से एक थे ब्रिटिश वैज्ञानिक स्टीफन ओपेनहाइमर। ओपेनहाइमर ने दुनिया के विभिन्न देशों और महाद्वीपों की यात्रा की और सभी प्रकार की प्रजातियों के डीएनए नमूने लिए और वर्षों बाद, उन्होंने अपने संशोधन के निष्कर्षों के आधार पर 1998 में एक पुस्तक प्रकाशित की ‘ईडन इन द ईस्ट‘। मतलब कि आदम और इव का निवासस्थान पूर्व में है।
ओपेनहाइमर ने सूत्रकाणिका डीएनए के अध्ययन से जाना कि आज अफ्रीका के बाहर जितनी भी मानव प्रजाति रहती हैं वह सब अफ्रीका से किसी एक समय पर बहार आये हुए कोई एक ही मानवसमूह के वंशज हैं। यानी हमारी पहले की पूर्वधारणा की – आधुनिक मानव से पहले जो आदिमानव अफ्रीका के बहार अलग-अलग प्रदेशो मे गए थे उन्ही में से विकसित हुए आधुनिक मानव आज उस प्रदेश में बसने वाले मानवों के पूर्वज हैं – यह अब ग़लत साबित हो गई है। आदिमानव अफ्रीका से बाहर गए थे, लेकिन वह आज अफ्रीका के बहार रहनेवाले आधुनिक मानवों के पूर्वज नहीं हैं, वे विलुप्त हो गए थे।
ओपेनहाइमर ने विश्व की आबादी कैसे फैली उसकी सुन्दर जेनेटिकल रिसर्च विश्व के समक्ष उनके विविध पुस्तकों और डोक्युमेंट्री के जरिये रखी हैं। और आज उनके काम और संशोधनों को बीबीसी और यूनेस्को द्वारा प्रमाणित किया गया है। ओपेनहाइमर ने कहा कि सुत्रकणीका में एक महिला का डीएनए उसकी अगली पीढ़ी में धीरे-धीरे विकसित होता है और कुछ पीढ़ियों के बाद यह नए विकसित जीन्स की एक पूरी शाखा बनाता है। कुछ पीढ़ियों के बाद वह शाखा आगे दूसरी शाखा में विकसित होती है और उसमें से फिर तीसरी। इस प्रकार, सुत्रकाणीक डीएनए एक पेड़ की तरह फैलता है जिसमें आप आखिरी शाखा को पकड़कर वह शाखा कहा से आती हैं यह खोजने निकलो तो उसके मूल तक पहोंच सकते हो। इस तरह के संशोधन से पता चला कि आज की महिलाओं में सुत्रकाणीक डीएनए की शाखाओ मे नीचे की तरफ़ जाने पर एक ऐसा स्थान आता हैं जो अफ्रीकी महिलाओं और गैर-अफ्रीकी महिलाओं दोनों में मौजूद है। इस स्थान को L3 नाम दिया गया। इस L3 के बाद डीएनए की जितनी भी नयी शखा बनी, वह केवल गैर-अफ्रीकी महिलाओं में ही पायी जाती हैं। यानी की इस L3 सुत्रकाणीक डीएनए वाली महिलाए अफ्रीका से बहार गयी और फिर कभी अफ्रीका वापस नहीं लौटी। उनकी जो भी संतान हुई उन्होंने भी अफ्रीका के बाहर ही जीवन जीया।
अब एक और महत्त्वपूर्ण खुलासा। इस L3 के बाद इंसानी जीन्स की जो पहली शाखा बनी उसे M नाम, दूसरी शाखा को N और तीसरी शाखा का R नाम दिया गया। यह M शाखा वाली महिलाएँ वर्तमान अफगानिस्तान और ईरान में यानी की प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के प्रदेश में हैं, जबकि N शाखावाली महिलाएँ मध्य-दक्षिण भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (इंडोनेशिया आदि) और ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासीओ में हैं। और R डीएनए वाली महिलाएँ मध्य-पूर्व एशिया यानी अरब देशों में हैं। R के बाद मिलने वाली शाखा दक्षिणी और मध्य यूरोप में जाती है और फिर वहीं से अमेरिका और रशिया के रास्ते पूरी दुनिया में महिलाओं की डीएनए लाइन और उनके समय का पता लगता हैं।
तो इस तरह स्टीफन ओपेनहाइमर और उनके विश्व प्रसिद्ध ‘ब्रैड-शॉ फाउंडेशन’ ने मानव जाति के दुनिया भर में स्थानांतर के बारे में जो रुपरेखा दी है वह कुछ इस तरह हैं। लगभग एक लाख पचास हज़ार साल पहले, आधुनिक मनुष्य यानी की होमो सेपियन्स के सूत्रकाणिक डीएनए की शुरूआत अफ्रीका में होती हैं। लगभग 15 हज़ार साल अफ्रिका में भटकने के बाद, आधुनिक मनुष्यों का एक समूह पहली बार अफ्रीका से बाहर निकलने की कोशिश करता हैं। 1,35,000 से 1,15,000 साल पहले, यह समूह सहारा के उत्तर से भूमध्य-सागर को पार करके दक्षिणी यूरोप के लेवेंट क्षेत्र जहां आज क्रीट द्वीप हैं, वहां पहुँचता हैं। लेकिन अगले पच्चीस हजार सालों में यानी की आज से 90,000 साल पहले के समय तक, यह क्षेत्र अत्यधिक वर्षा और शीत युग के प्रदेश में बदल जाता हैं और वहां पहुँचे सभी होमो सेपियन्स का नाश हो जाता हैं।
क्रीट में से मिले उनके जीवाश्मों के डीएनए अध्ययन से पता चला कि उनमे होमो सेपियंस का ही सूत्रकाणिक डीएनए हैं। लेकिन उनके डीएनए की आगे की कोई शाखा विश्वमें कहीं भी पायी नहीं जाती हैं। इस घटना के दस हज़ार साल बाद और आज से 80000 साल पहले अफ्रीका से होमो सेपियन्स का एक और समूह अफ्रीका के बाहर निकलता हैं। लेकिन वे उत्तर की ओर जाने के बजाय पूर्व में लाल समुद्र को पार करके भारतीय उपमहाद्वीप की ओर जाते हैं। सूत्रकाणिक डीएनए के अनुसार, अफ्रीका के बाहर की आज की पूरी मानवजाति भारतीय उपमहाद्वीप की ओर जाने वाले इस मानव समूह के वंशज हैं। यह समूह वर्तमान ईरान और अफगानिस्तान के क्षेत्र में एक सभ्यता का निर्माण करता हैं। उसके पाँच हज़ार से दस हज़ार साल की अवधि में, इस सभ्यता के लोगों का एक समूह वर्तमान मध्य और दक्षिणी भारत, दक्षिण एशिया और ऑस्ट्रेलिया में चला गया। उसके बीस हज़ार साल बाद और आज से लगभग पचास हज़ार साल पहले, भारतीय उपमहाद्वीप की उस मूल मानव बस्ती में से कुछ समूह वर्तमान मध्य-पूर्वी देशों और यूरोप की तरफ़ प्रयाण करते हैं। फिर करीब 40000 साल पहले इस मूल भारतीय बस्ती में से कुछ लोग चीन, जापान और उत्तरी एशिया पहुँचे और वहाँ पहुँचने वाली मानव आबादी लगभग 19,000 साल पहले वर्तमान उत्तरी और दक्षिण अमेरिका महाद्वीपों तक पहुँचती हैं।
इस प्रकार डीएनए की यह वैज्ञानिक शोध हमें यह उत्तर देती है कि सिंधु घाटी की वैदिक सभ्यता अफ्रीका से बाहर निकलें मनुष्यों के सर्वप्रथम समूह द्वारा निर्मित की गयी एक सभ्यता थी, जहाँ से लोग समय-समय पर स्थानांतर करके अलग-अलग प्रदेशो में गए, न कि बाहर से कोई उसमे आया। हम इसी श्रंखला के आनेवाले लेखों में देखेंगे की डीएनए पर आधारित इस आधुनिक शोध की पुष्टि करनेवाले कैसे कैसे साक्ष्य हमें विभिन्न सभ्यताओं के शास्त्र और इतिहास में मिलते है। इन सब साक्ष्य को एकसाथ मिलाने के बाद आर्यो के अतिक्रमण की थियरी दुर्भावना से किया गया एक हास्यास्पद और विकृत आलाप ही लगता है। आगे बढ़ते है अगले लेखों में।