Published on February 06, 2018/ On Facebook
'वह किसी परणीत स्त्री का समाज की रूढ़ियों से मजबूर होकर किया गया जौहर नही था। वह प्रेम और आत्मसम्मान के लिए किया गया जौहर था।'
तो, कल का पद्मावत वाला लेख बहुत गूंजा। ढेर सारी तारीफें मिली तो कुछ विरोध के सवाल भी। ज्यादातर सवाल फ़िल्म का विरोध करने वाले लोगों के थे जो अभी भी झूठे तथ्यों के साथ अपना आखिरी बचा-कुचा लूला बचाव कर रहे थे। अब तो उनके लिए भी यह मुश्किल हो जाएगा क्योंकि पिछले शुक्रवार को करणी सेना की राष्ट्रीय शाखा ने भी फ़िल्म की तारीफ करते हुए आंदोलन वापस लेने का ऐलान किया है। लेकिन फिर भी एक सवाल बेहद जरूरी और बुद्धिजीवी था, जिस पर हमारे बीच जो चर्चा हुई वह ज्ञानवर्धक है। वह चर्चा मैं यहाँ दे रहा हूँ।
सवाल: आपने स्वरा भास्कर को जो जवाब दिया वह अद्भुत है। काश दीपिका और शाहिद द्वारा दिए गए जवाब भी इतने कठोर होते। बावजूद इसके, जब मैंने स्वरा भास्कर का वह पत्र पढ़ा, तो इतना डाऊट मुझे भी हुआ कि क्या आधुनिक समय के अनुसार रानी पद्मावती की आत्महत्या कुछ ज़्यादा नहीं है…? क्या एक स्त्री के जीवन का महत्त्व केवल उसकी वजाइना को बचाने में ही हैं…? क्या रानी पद्मावती का ज्ञान, उनकी चतुराई और उनकी अन्य सारी खुबिया सिर्फ़ इसलिए नष्ट हो गयी ताकि कोई उनसे सेक्स न कर सके..? मुझे लगता है कि इस सवाल को केवल धाक-धमकी और विरोध से दबा दिया जाये उस में नुक़सान है, क्योंकि हम जिस तरह मोर्डन और लिबरल हो रहे हैं और जिस तरह से महिला सशक्तिकरण का आन्दोलन गति पकड़ रहा है, उसमे किसी दिन यह सवाल बहुत प्रबलता से सामने आयेगा। लेकिन में इस सवाल को सार्वजनिक तौर पर पूछ के मुसीबत सर पर न ले लू, इसलिए निजी तौर पर पूछा। क्योंकि हिन्दुवादी लोगों में भारतीय सभ्यता को तार्किकता से समजाने की आपकी क्षमता वाकई में क्रांतिकारी हैं।
उत्तर: आपका प्रश्न सही में सुंदर है और इसे पूछने में डरने की कोई ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि प्राचीन भारत में ऐसे विरोधाभासी सवालों पर हमेशा कड़ी बहस होती थी और उसके बाद ही किसी विचार या तर्क को स्वीकारा जाता था। पर आज हम ऐसे मुश्किल सवालो का जवाब देने में सक्षम नहीं रहे हैं, इसलिए भावनाए आहत हो जाने के नाम पर उन्हें गालियाँ देकर दबा देते हैं।
रानी पद्मावती के जौहर को पति के पीछे सती होती पत्नी के रूप में पुरुष प्रधान समाज ने फैलाया था, क्योंकि इससे महिलाओं को फिर से सीता जैसी कोई देवी दिखा के पुरुषो के प्रति समर्पित रहने का कहने में आसानी हो गयी। इस बात से समाज में सती प्रथा की कुरीति को नैतिक प्रोत्साहन मिला, जिसे मिटाने में हमे छह शताब्दियाँ लग गयी थी। रानी पद्मावती के जौहर को राजपूती शान के साथ राजपुतोने जोड़ा। जिसमें मुझे कोई विशेष हानि नहीं दिखती। लेकिन वास्तव में पिछले आठसौ वर्षों के इतिहास में हजारों राजपुतानियों के जौहर के सामने रानी पद्मावती का जौहर सबसे सम्माननीय माना जाता है, क्योंकि यह आत्मसम्मान के साथ प्रेम की जीत के लिए दिया गया बलिदान था। राजा रतनसिंह और पद्मावती के प्रेम को अभी एक साल भी नहीं हुआ था कि अलाउद्दीन खिलजी नाम का एक बलात्कारी विलन उन्हें अलग करने आ गया था। वे दोनों एक-दूसरे के गहरे प्यार में थे, दो शरीर एक आत्मा के जैसे और एक बलात्कारी गुंडा उनमें से एक को दूसरे से छिनने के लिए आया था। वह दोनों उस बलात्कारी से लडे।
राजा रतन सिंह युद्धभूमि में और पद्मावती अपने महल में। जिसमें राजा रतन सिंह को कपटपूर्वक मार दिया गया। पद्मावती का जौहर जिसे आपने आत्महत्या कहा हैं, वह उस व्यक्ति को विफल करने के लिए था जिसने पद्मावती से उसका प्यार छीन लिया था। अगर पद्मावती और अन्य राजपूतानीया तलवारों से लडी होती तो भी खिलजी और उसके सैनिक पद्मावती को ज़िंदा पकड़ने की ही कोशिश करते और इससे बचने के लिए उसे दूसरे तरीके से आत्महत्या करनी पड़ती। लेकिन पद्मावती ने जो किया उसकी वज़ह से खिलजी को उसका शरीर तो दूर पद्मावती कैसी थी वह जानने के लिए उसका चेहरा भी देखने को नहीं मिला। यही खिलजी की बड़ी हार थी और यह जोहर से ही हो सकता था। पद्मावती ने अपनी इज़्ज़त के डर से जौहर नहीं किया था। उसने अपने प्यार को जीताने के लिए और अपनी आत्मा को एक बलात्कारी की छाप से दूर रखने के लिए जोहर किया था। और यह आज ही नहीं बल्कि आज से पांच हज़ार वर्ष बाद के अतिआधुनिक युग में भी सही ही माना जाएगा। किसी भी बलात्कारी के सामने आत्मसमर्पण करने के बजाय उसके खिलाफ लड़ना और लड़ते हुए मरना ही धर्म है। बात इसमें वजाइना की नहीं हैं, बात हैं एक स्त्री के आत्मसम्मान की। मूल्य वजाइना का नहीं है, मूल्य हैं एक व्यक्ति की आत्मा का जो किसी के साथ प्रेम से जुडी हुई है और किसी और के स्पर्श तो क्या उसकी परछाई भी ख़ुद पर पड़ने देना नहीं चाहती। यह बलात्कार के विरूद्ध प्रेम की लड़ाई है। यह शारीरिक वासना के विरूद्ध प्रेम की लड़ाई हैं और माँ पद्मावती वासना के सामने प्रेम को जिताने के लिए जोहर करती हैं। इसलिए उन्हें अधर्म का नाश करके सत्य को जिताने वाली देवी के रूप में पूजा जाता हैं। प्रेम सत्य है और वासना अधर्म है। यही कारण है कि आज भी राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में कुछ स्थानों पर माँ पद्मावती के मंदिर हैं और प्रेमी अपने प्यार को जिताने और प्यार में रूकावट बनते तत्वों को हराने के लिए वहां प्रार्थना करने जाते हैं।
प्रश्न: तो क्या आज भी अगर किसी महिला या लड़की के सामने कोई बलात्कारी आ जाये तो लड़ना या मरना वही दो विकल्प सोचने चाहिए?
उत्तर: नहीं, नहीं। आप अभी भी दोनों के बीच के अंतर को समझने में गलती कर रहे हैं।
अगर कोई लड़की ऐसे बलात्कारियों के बीच फंस जाती है, तो उसे आत्मरक्षा के लिए संघर्ष करना चाहिए, पर अपनी जान बचानी चाहिए। बलात्कार हो भी गया हो तो कोई इज़्ज़त नहीं लूट जाती। उसमे आत्महत्या करने की कोई ज़रूरत नहीं है। बलात्कार से शरीर से कुछ लूंट नहीं जाता हैं, न तो कोई वजाइना अपवित्र हो जाती हैं। स्त्री का शरीर एक मंदिर है और उस मंदिर में स्त्री की इच्छा विरुद्ध प्रवेश करना वह उसके आत्मसम्मान पर हमला हैं। बलात्कार बस यही है। इससे ज़्यादा महत्त्व देने की ज़रूरत नहीं है। जिस लड़की का बलात्कार हुआ हैं उसे उतने ही स्वाभिमान से जीना हैं, जितना और लोग जीते हैं। उसे उसके आत्मसम्मान का हनन करने वालो को सजा दिलानी हैं और उन सबसे ज़्यादा एक ऐसा समृद्ध जीवन जीना हैं कि जो विश्व के लिए एक प्रेरणा बने, जैसा अमेरिकी एंकर ओपरा विनफ्रे ने बलात्कार के बाद जीकर दिखाया हैं।
लेकिन रानी पद्मावती का किस्सा अलग है। यहाँ पद्मावती के जीने का कारण, उसका प्यार, उसे बचाते हुए मर चूका हैं। अब उसके पास जीने के लिए कुछ नहीं बचा है और उसके पास रतनसिंह के बलिदान को सफल बनाने का एक ही रास्ता हैं कि खिलजी के हाथों में उसका शरीर तो दूर उसकी परछाई भी न आये। और इसके लिए वह सबसे कठिन मार्ग अपनाती है, अपने शरीर को अग्नि के हवाले कर देने का। तो संक्षेप में अंतर यह है, अगर पद्मावती कुंवारी होती और खिलजी उसके सामने इस तरह आता तो वह अपने आत्मसम्मान के लिए सशस्त्र युद्ध करती। अगर खिलजी उनके साथ जबरदस्ती कर भी देता तो भी वह आत्महत्या नहीं करती। वह खिलजी को अपने अपराध के लिए सजा दिलाने में अपना जीवन बिताती। लेकिन अगर वह रतनसिंह के प्यार में होती लेकिन उनकी शादी न हुई होती और अगर खिलजी इस तरह से सामने आया होता तब भी वह रतनसिंह की मृत्यु के बाद खिलजी को हराने के लिए इसी तरह जोहर करती। वह किसी परणीत स्त्री का समाज की रूढ़ियों से मजबूर होकर किया गया जौहर नही था। वह प्रेम और आत्मसम्मान के लिए किया गया जौहर था। उस वक्त सिर्फ एक वक्त के बलात्कार की बात नहीं थी, मुस्लिम आक्रांता के हाथ लग जाने का मतलब आजीवन सेक्स स्लेवरी का भयानक नर्क था, जिसमे कभी न कभी स्त्री आत्महत्या ही कर लेती है। इसी वजह से पद्मावती के बाद भी राजपूतानीयों ने जौहर की विरासत को जारी रखा था। वह सेक्स स्लेवरी के नर्क से बचकर अपनी आत्मा और आत्मसम्मान को प्रज्वलित रखने का नायाब मार्ग था। सच और झूठ में बारीक अंतर होता है। पद्मावती और उनके बाद की राजपूत स्त्रियों ने विपरीत समय में सत्य के सच्चे मार्ग को पहचाना, जो कि सबसे पीड़ादायक था। फिर भी वह उस रास्ते पर गर्व से चली। इसी बात ने उन्हें पद्मावती से ‘माँ पद्मावती‘ और ‘देवी पद्मावती‘ बनाया।