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July 29 / 2018 / Re-launched On Facebook on same date 2020 / Subject : The Indian Religion
राम-सीता का आपसी त्याग
मानवइतिहास का सबसे महान फैसला
July 17 / 2020 / On Facebook / Subject: Spirituality & Self Realizations
हर जीवन वैसा ही अंत चाहता है जैसा वह जिया गया है...
दिसंबर 2012 में, जब मैं अपने तपस्वी जीवन का परीक्षण करने के लिए बेलूर मठ में था, तो वहाँ के एक स्वामी, आत्मप्रियानंदजी ने अपनी सलाह मुजे इस सारांश के साथ कही, “आत्मज्ञान के बाद, संसार क्या और संन्यास क्या? यदि मन स्थितप्रज्ञ रह सकता है, तो संसार तुम्हारा क्या बिगाड़ लेगा? और यदि मन स्थिर नहीं रह सकता है, तो संन्यास तुम्हे क्या दे सकेगा?’ इस कथन ने मुझे वापस आने का साहस दिया। मैंने जनवरी 2013 में बेलूर से वापस आने के बाद अपने फोन में यह एक तस्वीर संग्रहीत की थी जो यहाँ मैंने दी है। इस तस्वीर को देखकर मैं समय-समय पर खुद को यह दिलासा देता रहता था कि एक दिन जब सभी सांसारिक कार्य पूरे हो जाएंगे, तो मैं सबकुछ छोड़कर ऐसी जगह जाकर अपने जीवन का समय ध्यान में बिताऊंगा और शरीर को स्वेच्छा से वहीं छोड़ दूंगा। लेकिन अब धीरे-धीरे स्वामी आत्मप्रियानंदजी ने जो कहा वह आत्मबोध में आ रहा है।
यही की अगर दुनिया में संसारी जीवन व्यतित करते वर्षों को स्थितप्रज्ञता के साथ नहीं बिताया गया, तो अंत में एक सुंदर और शांतिपूर्ण जगह पर जाने पर भी कोई शांति नहीं आएगी। अगर आज इस चित्र के सामने देखते वक्त जीवन इतना शांत और ध्यानपूर्ण लगता है, तो ही अंतिम दिनों में ऐसा होगा। यदि राम और कृष्ण की तरह स्थितप्रज्ञ मन से सांसारिक कार्य नहीं किया गया, जहां हर सफलता-विफलता को एक खेल के रूप में माना गया हो और आप दुनिया के बीच भीड़ में भी ध्यान लगाने में सक्षम हो, तो ऐसी शांत जगह में भी मन अतीत की बेचैन छाया में ही भटकता रहता है। इसीलिए, एक आत्मज्ञानी व्यक्ति के लिए संसार संन्यास से बड़ा विद्यालय है। दुनिया में लगातार होने वाले परीक्षण और अकेलापन एक साधु को विष्णु बनाते हैं। और केवल ऐसे विष्णु ही अंत में ऋषि की तरह दुनिया को छोड़कर एकांत में प्रबुद्ध मन से शरीर छोड़ सकते हैं।
इसलिए आप जैसा जीवन जीते है वैसी ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वह जो भौतिकवादी बनके जीता है अंततः एक भौतिकवादी की बेचैनी और ज़टपटाहट के साथ मरता है। वह जो कर्मठ बनकर जीता है वह कर्मठ व्यक्ति के रूप में काम करते हुए ही मरता है। जो गुलाम बनकर जीता है वह गुलाम की मौत मरता है। जो बनावटी बनकर जीता है वह आखरी सांस तक बनावट करते हुए मरता है। ज्ञानी आदमी ज्ञान के साथ मरता है, भक्त भक्ति के साथ मरता है। स्थिर मनवाले आत्मज्ञानी आत्मा में ध्यान लगाकर शरीर को छोड़ देते है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि स्थान क्या है। महत्व हमारी आंतरिक स्थिति का है। हर जीवन वैसा ही अंत चाहता है जैसा उसे जीया गया है। आप अंत में कुछ नहीं बदल सकते। आप सिर्फ बाहरी वातावरण को बदल सकते हैं, पर किसी व्यक्ति का आंतरिक वातावरण वैसा ही रहता है जैसा कि वह जीवन भर उसके अंदर रहा है। तो आपकी अंतिम यात्रा में कितने लोग आए, आपकी मृत्यु के बाद बैठने और बारहवें दिन कितने लोग आए ये बातें आपके जीवन का मूल्य निर्धारित नहीं करती। जो लोग आपके सामने जीवनभर जूठा हँसे होते हैं, वह आपके मरने के बाद जूठा रोने आते है। ताकि जब वह मर जाए तो उनके लिए दूसरे रोने आए। यह समाज की भीड़ में रहने का एक बीमा है, जहां लोग सभाओं में भाग लेकर अपने प्रीमियम का भुगतान करते हैं। तो कुछ व्यापारी और नेता ‘मैं आया हूँ’ ये दिखाकर व्यापार और वोट सुरक्षित करने आते हैं। इसलिए अगर कोरोना की वजह से ये सर्कस बंद हो रहा है, तो इसे बंद रखने में ही भलाई है।
तो, आखिर में सार यही है कि आप कैसे मरते हैं यह बिल्कुल भी मायने नहीं रखता। आप कैसे जीते हैं यह महत्वपूर्ण है; सत्य का योद्धा बनकर या असत्य का गुलाम बनकर? यही आपके जीवन और मृत्यु दोनों का अर्थ निर्धारित करता है।
January 31 / 2022 / On Facebook / Subject: Spirituality & Self Realizations
आत्मज्ञानी मनुष्य की दुनिया में उपयोगिता
प्रश्न: आत्म-साक्षात्कार के बाद इस बनावटी दुनिया में रहना कैसे संभव है? जब एक आदमी को पता चलता है कि यह सब एक धोखा है, तो क्या उसके लिए फिर से उन लोगों के बीच अज्ञानता में रहना कोई समस्या नहीं है?
– डॉ। वेणु शाह
जवाब : हकीकत इसके उलट है। यदि आप सच्चे और स्वाभाविक हैं, लेकिन आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त नहीं हुए हैं, तो इस झूठी दुनिया में रहना बहुत मुश्किल है। समय-समय पर आपको धोखा दिया जाता है और बहुत चोट पहुंचाई जाती है। लेकिन अगर आप दुनिया की पूरी सच्चाई और अपने पीछे के सफर को जान लें तो वह बनावटी दुनिया आपके लिए बनावटी नहीं रहती। अब, आप जानते हैं कि वे लोग क्या है और वे क्या करेंगे? वह समय आएगा जब वे लोग आपको धोखा देंगे, लेकिन आप इससे इतने आहत नहीं होंगे, क्योंकि आप जानते होते हैं कि वे ऐसा ही करने वाले हैं। जब तक वे लोग पूरी तरह से पवित्र और केवल सत्य के लिए कर्म करने प्रति प्रतिबद्ध नहीं हो जाते, तब तक आप उनके सभी भटकाव के लिए तैयार रहेंगे (जिसे ‘स्खलन’ कहा जाता है)। जब वे लोग आपको धोखा देकर भी आपको चोट नहीं पहुंचा पाते, तो उससे वे खुद चोटील होते है। तब वह ठगा हुआ महसूस करते है। उन्हें अपने मन में अपनी आत्मा गिरी हुई महसूस होने लगती है। आप उनके लिए एक आइने, संसार के बीच रहे एक दर्पण के रूप में कार्य करेंगे, जिसके सामने देखते ही उन्हें अपनी असलियत मालूम होती है। आत्म-जागरूक व्यक्ति की दुनिया में यही एकमात्र उपयोगिता है। इस पूरे मामले में एक आत्म-साक्षात्कार प्राप्त व्यक्ति के रूप में आपके लिए परेशानी या दुःख तब होता है, जब आप उन गिरे हुए और झूठे लोगों से नेक काम करने की उम्मीद कर बैठते हैं। बस इसीसे बचना है। हमेशा जागरूकता बनाए रखनी है, ताकि उन्हें ठीक वैसा देख सकें जैसा वे उस वक्त है।
सांसारिक कर्मों के लेन-देन एटीएम के लेनदेन के समान हैं। आपके बैंक एकाउंट में बहुत पैसे है, पर आप एटीएम से उतने ही पैसे उठाते है जितने की उस वक्त जरुरत है। ठीक उसी तरह आत्म-जागरूक व्यक्ति सत्य को जानकर संसार के बीच में रहता है और जब, जितना और जैसा व्यवहार चाहिए उतना ही व्यवहार करता है। वह इस परम सत्य को नहीं भूलता कि ये सब अज्ञानी मनुष्य भी एक ही ब्रह्म के भिन्न टुकड़े हैं, जो कामुक स्वार्थ और अहंकार के कारण पतित हो गए हैं। वह अंदर से किसी से नफरत नहीं करता, पर अपने कर्मों को सत्य की ओर अडिग रखता है। श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का सिर काट दिया, फिर शिशुपाल की आत्मा के रूप में उस जय की आत्मा बाहर निकली, जो वैकुंठ में विष्णु का द्वारपाल था। जय को देखते ही कृष्ण के चेहरे पर भाव प्रेममय हो गए। जय ने उन्हें प्रेम और भक्ति से प्रणाम किया। कृष्ण ने एक पिता अपने बच्चे से कह रहा हो वैसे प्रेमभाव से कहा, ‘शाप समाप्त हो गया है। वैकुंठ लौट जाओ, और द्वार पर पहरा दो। मैं कार्य पूरा होने पर आ जाऊँगा।’ जय ने प्रेममय आंसुओं से सिर झुकाया और प्रणाम करते हुए वैकुंठ की ओर चल दिया। यह वही जय था, जो कुछ पल पहले कृष्ण को दुश्मन मानकर गालियाँ दे रहा था। और जय को एक पिता की तरह प्रेम देते यह वही कृष्ण थे, जिन्होंने कुछ पल पहेले उसकी शिशुपाल रूपी पहचान का सिर काट दिया था। बस, यही संसार है। एक अर्ध सत्य जिसका सम्पूर्ण सत्य एक आत्मज्ञानी इंसान जानता है। इसीलिए संसार में एक आत्म-जागरूक इंसान और एक अज्ञानी इंसान के बीच का यही व्यवहार होता है, जो कृष्ण और शिशुपाल के बीच में था।
May 09 / 2022 / On Fecebook / Subject: Indian Religion
देशभक्ति नहीं, भारत-भक्ति
जैसे-जैसे समय बीतता है आप खुद को और भी ज्यादा समझते हैं। एक प्रसंग पर, मेरा परिचय यह एक प्रशंसा के साथ दिया गया कि, “हम जानते हैं, कौशिकभाई एक बहुत ही देशभक्त व्यक्ति हैं।” लेकिन यह सुनकर मैं खुश होने के बजाय बेचैन हो गया। लगा जैसे मैंने कोई जूठ सुना है, या अर्धसत्य सुना है। अचानक मेरा मन कारण की खोज करने लगा और बहुत कठिन आत्म-परीक्षण करने लगा जिसके लिए वह अभ्यस्त है। जब तक माइक मेरे हाथ में आया, तब तक मन उस बेचैनी का कारण समझ चुका था। मैंने कहा, ‘जहां तक देशभक्ति का सवाल है, यह कहना गलत है कि मैं देशभक्त हूं। मैं देशभक्त नहीं हूं। वह जमात तो हर देश में पाई जाती है। मैं भारत का भक्त हूं।’
अगर मैं किसी दूसरे देश में पैदा हुआ होता, तो भी कभी न कभी भारत को चाहने की स्थिति में आ गया होता। यह वह सभ्यता है जो मानवता को उसके अस्तित्व का कारण बताती है, और उसे वह मार्ग महसूस कराती है। अगर आप इस धरती पर एक इंसान के रूप में पैदा हुए हैं, और एक इंसान के अस्तित्व के कारण एवं उसके जीवन की सार्थकता पर कभी विचार किया है, तो उस विचार का अनुसरण अंततः आप को भारत के प्रेमी बनने की स्थिति में ही ले आएगा। पृथ्वी पर के किसी भी देश में जन्मा मनुष्य, जो इस विचार का अनुसरण करता है, वह अंततः भारत का भक्त बन जाता है। और इस विचार का अनुसरण न करने वाले सभी मनुष्य देशभक्त बन जाते हैं। देशभक्ति स्वार्थ और अहंकार की उपज है। एक देश ‘मेरा’ है तो वह महान है, उसके लिए मैं किसी को मारने और मरने के लिए भी तैयार रहूंगा। इस स्थिति में एक भारतीय, एक पाकिस्तानी, एक रूसी, एक अमेरिकी, एक चीनी, एक जर्मन, एक यूक्रेनी या एक कोरियाई – सभी मानव समान हो जाते हैं। पिछले डेढ़ सौ वर्षों का विश्व का इतिहास इन सभी देशभक्तों के बीच हुए युद्धों का इतिहास है। मैं देशभक्त नहीं हूं, मैं भारत का भक्त हूं। मैं भारत के आध्यात्म और मानवता की सनातन विरासत के लिए लड़ रहा हूं। मुझे इस बात का कोई डर नहीं है कि मैं फिर कहां जन्म लूंगा? क्योंकि मैं जानता हूं कि अगले जन्म में भी मैं जब भी सत्य की खोज में निकलूंगा, भारत की भक्ति करने की स्थिति में ही आ जाऊँगा।